अदाचिगाहारा की राक्षसी (Goblin of Adachigahara)

(यह कहानी जापान की एक पुरानी लोककथा पर आधारित है)

बहुत समय पहले की बात है, जापान के मुत्सु (Mutsu) प्रांत में एक विशाल समतल भूमि थी, जिसे अदाचिगहारा (Adachigahara) कहा जाता था। इस जगह को बेहद भयानक और डरावना माना जाता था क्योंकि वहाँ एक नरभक्षी राक्षसी का वास था। वह एक बूढ़ी औरत का रूप धारण कर लोगों को धोखे से अपनी झोंपड़ी में बुलाती और फिर उन्हें मारकर खा जाती।

गाँव की औरतें जब रात में अंगीठी के पास बैठतीं या सुबह कुएँ पर पानी भरने जातीं, तो इसी राक्षसी की डरावनी कहानियाँ फुसफुसाहटों में सुनाई देतीं। कहा जाता था कि जो भी यात्री उस इलाके में जाता, वह कभी लौटकर नहीं आता। इसलिए लोग सूर्यास्त के बाद वहाँ जाने से कतराते और मुसाफ़िरों को भी वहाँ न जाने की चेतावनी दी जाती।

भटके हुए यात्री की तलाश

एक दिन, जब सूर्य डूबने ही वाला था, एक बौद्ध साधु उस मैदान में पहुँचा। वह एक तीर्थयात्री था, जो विभिन्न मंदिरों में प्रार्थना करने और मोक्ष की खोज में घूम रहा था। पूरा दिन चलने के कारण वह बेहद थक चुका था, भूख से बेहाल था और ठंड की वजह से काँप रहा था।

दुर्भाग्यवश, वह रास्ता भटक गया था। आस-पास कोई भी ऐसा नहीं दिखा, जो उसे सही राह दिखा सके या उस भयानक जगह की चेतावनी दे सके।

कई घंटों तक भटकने के बाद, उसे कुछ दूरी पर पेड़ों का झुंड दिखाई दिया। उन पेड़ों के बीच में एक मद्धम रोशनी टिमटिमा रही थी।

“ओह! शायद वहाँ कोई झोंपड़ी हो,” उसने राहत की साँस ली।

थकान के बावजूद, उसने अपनी आखिरी ताकत जुटाई और तेज़ी से उस रोशनी की ओर बढ़ने लगा। कुछ ही देर में, वह एक टूटी-फूटी झोंपड़ी के पास पहुँचा। झोंपड़ी की हालत बहुत जर्जर थी—बाँस की बाड़ टूटी हुई थी, और खिड़कियों में लगा कागज फटा हुआ था। उसकी छत इतनी झुकी हुई थी मानो किसी भी समय गिर पड़ेगी। झोंपड़ी का दरवाज़ा आधा खुला था। अंदर एक बूढ़ी औरत दीपक की हल्की रोशनी में चरखा कात रही थी।

रहने के लिए विनती

साधु ने बाँस की बाड़ के पास से आवाज़ दी,

बूढ़ी माँ! नमस्ते! मैं एक मुसाफ़िर हूँ, और रास्ता भटक गया हूँ। रात भी गहरी हो रही है, और मुझे नहीं पता कि कहाँ जाऊँ। क्या आप कृपा करके मुझे आज की रात अपनी छत के नीचे शरण देंगी?”

बूढ़ी औरत ने जैसे ही उसकी आवाज़ सुनी, वह चरखा चलाना छोड़कर उठ खड़ी हुई।

अरे बेटा! तुम सच में बहुत परेशानी में लग रहे हो। यह इलाका बड़ा सुनसान और खतरनाक है। पर मेरा घर बहुत छोटा और टूटा-फूटा है, यहाँ तुम्हारे आराम के लिए कुछ भी नहीं है,” बूढ़ी औरत ने चिंतित स्वर में कहा।

साधु ने हाथ जोड़कर कहा,

“मुझे बिस्तर की ज़रूरत नहीं है, माँ! बस ज़मीन पर कहीं सोने की जगह मिल जाए, तो बहुत होगा। मैं बहुत थक चुका हूँ, अब और आगे नहीं चल सकता। अगर आपने मुझे ठहरने की इजाज़त न दी, तो मुझे ठंडी ज़मीन पर खुले में रात बितानी पड़ेगी।”

बूढ़ी औरत कुछ देर सोचती रही, फिर धीरे से बोली,

“ठीक है बेटा, अंदर आ जाओ। मेरा घर बहुत आरामदायक तो नहीं, लेकिन कम से कम यह ठंड से बचने की जगह तो है। आओ, मैं तुम्हारे लिए आग जला देती हूँ।”

साधु ने राहत की साँस ली, अपनी सैंडल उतारी और झोंपड़ी में प्रवेश किया।

रहस्यमयी चेतावनी

बूढ़ी औरत ने कुछ लकड़ियाँ इकट्ठा कीं और आग जला दी। फिर वह साधु से बोली,

“तुम्हें भूख लगी होगी, मैं तुम्हारे लिए कुछ भोजन तैयार कर देती हूँ।”

साधु ने कृतज्ञता से सिर झुका दिया। खाना खाने के बाद वह और बूढ़ी औरत अंगीठी के पास बैठकर बातचीत करने लगे। बूढ़ी औरत बहुत दयालु और मीठी वाणी वाली लग रही थी।

कुछ समय बाद, आग बुझने लगी और ठंड बढ़ने लगी। बूढ़ी औरत उठी और बोली,

“लकड़ियाँ खत्म हो गई हैं। मैं जंगल से कुछ और इकट्ठा करके लाती हूँ। तुम यहीं रहो और घर का ख्याल रखना।”

साधु ने तुरंत कहा,

“नहीं माँ! मैं खुद चला जाता हूँ। आप वृद्ध हैं, मैं आपको इस ठंड में बाहर जाने नहीं दूँगा।”

बूढ़ी औरत ने सिर हिलाया, “नहीं बेटे, तुम मेरे अतिथि हो। तुम्हें कहीं जाने की ज़रूरत नहीं।” फिर वह दरवाज़े की ओर बढ़ी, लेकिन जाने से पहले उसने चेतावनी भरे स्वर में कहा,

ध्यान रखना! जब तक मैं वापस न आ जाऊँ, इस झोंपड़ी के पिछवाड़े वाले कमरे में झाँकने की गलती मत करना!

इतना कहकर वह बाहर चली गई।

खौफ़नाक रहस्य

बूढ़ी औरत के जाने के बाद साधु अकेला रह गया। आग बुझ चुकी थी, और अब केवल दीपक की हल्की रोशनी बची थी। अब पहली बार उसे इस जगह की अजीबता का एहसास हुआ।

“आख़िर वह मुझे पीछे के कमरे में झाँकने से क्यों मना कर रही थी? क्या वहाँ कुछ रहस्य छुपा है?”

कुछ देर तक उसने खुद को रोकने की कोशिश की, लेकिन जिज्ञासा उस पर हावी होने लगी।

“बस एक बार देख लूँगा, बूढ़ी माँ को पता भी नहीं चलेगा,” उसने खुद को समझाया।

साधु धीरे-धीरे उठा और कांपते हाथों से दरवाज़ा सरकाया। लेकिन जैसे ही उसने अंदर झाँका, उसके हाथ-पैर सुन्न पड़ गए!

कमरा मानव कंकालों से भरा पड़ा था! खोपड़ियों का ढेर, कटी हुई हड्डियाँ, और रक्त से सने कपड़े हर ओर बिखरे थे। दीवारों पर खून के छींटे थे। कमरे से आती सड़ांध ने उसे लगभग बेहोश कर दिया।

हे भगवान! यह बूढ़ी औरत कोई इंसान नहीं, बल्कि वही राक्षसी है!” वह घबराकर पीछे गिर पड़ा।

राक्षसी का प्रकट होना

साधु का डर अब चरम पर था। वह जितनी तेज़ी से हो सकता था, अपनी टोपी और लकड़ी की छड़ी उठाकर वहाँ से भाग निकला। लेकिन तभी उसने सुना—

रुक जा! तूने मेरे राज़ को देख लिया! अब तू बचकर नहीं जा सकता!

बूढ़ी औरत अब राक्षसी के असली रूप में बदल चुकी थी। उसके बाल बिखर गए, आँखें जलने लगीं, और उसके हाथों में रक्त से सना तेज़ धार वाला चाकू था। वह गरजती हुई साधु के पीछे दौड़ी।

साधु ने अपने पैरों में ज़ोर लगाया और पूरी ताकत से भागा। वह बुद्ध भगवान का जाप करने लगा।

अचानक, सुबह की पहली किरणें फैलने लगीं और सूरज उग आया। सूरज की रोशनी पड़ते ही वह भयानक राक्षसी धुएँ में बदल गई और हवा में गायब हो गई। साधु ने बुद्ध को धन्यवाद दिया और वहाँ से हमेशा के लिए चला गया।

कहानी से सीख

कभी भी किसी के भले व्यवहार के पीछे छुपे असली इरादों को समझना ज़रूरी है। अधिक जिज्ञासा कभी-कभी घातक भी हो सकती है।

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