अमरता की खोज: एक स्वप्न और सत्य (Man Who Did Not Wish to Die)

(यह कहानी जापान की एक पुरानी लोककथा पर आधारित है)

बहुत समय पहले की बात है…

एक समय की बात है, एक व्यक्ति था जिसका नाम सेनटारो (Sentaro) था। उसका उपनाम “लाखपति” था, लेकिन वास्तव में वह न तो बहुत धनी था और न ही गरीब। उसे अपने पिता से एक छोटी-सी संपत्ति विरासत में मिली थी, जिससे उसका जीवन आराम से चल रहा था। वह दिनभर आनंद में समय बिताता, काम करने की कोई चिंता उसे नहीं थी। लेकिन जैसे-जैसे उसकी उम्र बढ़ने लगी, वैसे-वैसे उसके मन में एक विचित्र भय समाने लगा—मृत्यु का भय।

एक दिन, अचानक उसे यह सोचकर बेचैनी होने लगी कि यदि वह बीमार पड़ा या मर गया तो क्या होगा? यह विचार उसे इतना व्यथित कर गया कि उसने ठान लिया कि वह अमरता की खोज करेगा। उसने सोचा, “काश, मैं पांच या छह सौ साल तक जी सकता, बिना किसी बीमारी के। मनुष्य का जीवन तो बहुत ही छोटा होता है!”

अमरता की खोज का संकल्प

सेनटारो को पुरानी कथाओं में वर्णित उन सम्राटों की कहानियाँ याद आईं, जिन्होंने हजारों वर्षों तक जीवित रहने का प्रयास किया था। उसे एक ऐसी राजकुमारी की भी कथा याद आई, जो पाँच सौ वर्षों तक जीवित रही थी। लेकिन सबसे अधिक प्रभावशाली कहानी थी चीन के राजा शिन-नो-शिको (Shin-no-Shiko) की। वह बहुत ही शक्तिशाली और संपन्न राजा था। उसने शानदार महल बनवाए और चीन की महान दीवार का निर्माण करवाया। उसके पास सुख-सुविधाओं की कोई कमी नहीं थी, लेकिन फिर भी वह हमेशा उदास रहता था, क्योंकि उसे यह भय था कि एक दिन उसे सब कुछ छोड़कर मरना पड़ेगा।

राजा ने अपने दरबारियों को बुलाकर उनसे अमरता प्राप्त करने का उपाय पूछा। तब एक बुजुर्ग दरबारी, जिसका नाम जोफुकू (Jofuku) था, ने कहा, “समुद्र के पार एक रहस्यमयी द्वीप है, जिसे होराइज़ान (Horaizan) कहते हैं। वहाँ कुछ ऋषि रहते हैं, जिन्हें अमरता का रहस्य पता है। वे अमृत’ (Elixir of Life) नामक एक जादुई औषधि के रक्षक हैं, जिसे पीकर कोई भी अनंत काल तक जीवित रह सकता है।”

राजा ने तुरंत जोफुकू को एक शानदार जहाज देकर उस द्वीप की यात्रा पर भेजा। जहाज बहुमूल्य रत्नों और उपहारों से भरा हुआ था, जो उन ऋषियों को भेंट स्वरूप देने के लिए थे। लेकिन जोफुकू कभी वापस नहीं लौटा। तब से यह माना जाने लगा कि माउंट फ़ूजी (Mount Fuji) ही वह रहस्यमयी होराइज़ान है, जहाँ अमरत्व के रहस्य छिपे हैं।

संघर्ष की शुरुआत

सेनटारो ने भी संकल्प लिया कि वह उन ऋषियों को खोजेगा और अमरता प्राप्त करेगा। उसने अपना घर परिवार को सौंप दिया और पहाड़ों की ओर चल पड़ा। उसने कई ऊँचे-ऊँचे पर्वत पार किए, लेकिन कहीं भी उसे कोई ऋषि नहीं मिला।

एक दिन, वह जंगल में एक शिकारी से मिला। सेनटारो ने उससे पूछा, “क्या तुम्हें उन ऋषियों के बारे में पता है जो अमरता का रहस्य जानते हैं?”

शिकारी ने हँसते हुए उत्तर दिया, “मुझे तो किसी ऋषि का पता नहीं, लेकिन यहाँ एक कुख्यात डाकू रहता है, जिसके दो सौ अनुयायी हैं!”

यह उत्तर सुनकर सेनटारो को बहुत गुस्सा आया। उसे लगा कि वह व्यर्थ ही समय नष्ट कर रहा है। तब उसने जोफुकू के मंदिर में जाकर सात दिनों तक प्रार्थना करने का निश्चय किया।

सातवें दिन, आधी रात को मंदिर के गर्भगृह से एक दिव्य प्रकाश निकला और जोफुकू स्वयं प्रकट हुए। उन्होंने कहा, “सेनटारो, तुम्हारी इच्छा अत्यधिक स्वार्थी है। तुम अमर होना चाहते हो, लेकिन क्या तुम्हें पता है कि ऋषियों का जीवन कैसा होता है? वे केवल जंगली फल, बेर और पेड़ों की छाल खाते हैं। उन्हें न गर्मी सताती है, न सर्दी। वे धरती पर नंगे पाँव चलते हैं, और धीरे-धीरे उनका शरीर इतना हल्का हो जाता है कि वे हवा में उड़ सकते हैं। क्या तुम ऐसा कठोर जीवन व्यतीत कर सकते हो?”

सेनटारो ने सिर झुका लिया। तब जोफुकू बोले, “यदि तुम वास्तव में अमर रहना चाहते हो, तो मैं तुम्हें अमरता के देश भेज सकता हूँ। वहाँ कोई नहीं मरता और लोग सदैव जीवित रहते हैं।”

उन्होंने सेनटारो को एक जादुई कागज़ की बनी सारस चिड़िया दी और कहा, “इस पर बैठ जाओ, यह तुम्हें वहाँ ले जाएगी।”

अमरता के देश में प्रवेश

सेनटारो ने चिड़िया पर बैठते ही पाया कि वह बड़ी हो गई और तुरंत आकाश में उड़ चली। कुछ दिनों तक हवा में उड़ने के बाद वे एक द्वीप पर पहुँचे।

सेनटारो ने देखा कि वहाँ के लोग स्वस्थ, खुशहाल और संपन्न थे। वहाँ कोई बीमार नहीं पड़ता था, और न ही कोई मरता था। उसने सोचा कि अब वह सदा के लिए सुखी रहेगा।

लेकिन जल्द ही उसे यह जानकर आश्चर्य हुआ कि वहाँ के लोग अमरता से थक चुके थे! वे मृत्यु को एक वरदान मानते थे और स्वेच्छा से मरना चाहते थे, ताकि वे उस परलोक में जा सकें, जिसके बारे में उन्होंने सुना था। लोग जानबूझकर विषैले पदार्थ खाते, परंतु मृत्यु उन्हें छू भी नहीं पाती थी। अमरता उनके लिए एक अभिशाप बन गई थी।

सच्चाई का एहसास

धीरे-धीरे, सेनटारो भी इस अनंत जीवन से ऊब गया। वह अब अपने देश लौटना चाहता था। उसने फिर से जोफुकू से प्रार्थना की। तभी उसकी जेब से वही कागज़ की सारस निकली और आकार में बड़ी हो गई। वह उस पर बैठा और तुरंत आकाश में उड़ चला।

लेकिन रास्ते में एक भयंकर तूफ़ान आया, और सारस भीग गई। वह कमजोर होकर समुद्र में गिर पड़ी, और सेनटारो भी पानी में डूबने लगा। उसे मौत का डर सताने लगा और वह ज़ोर-ज़ोर से जोफुकू को पुकारने लगा।

अचानक, उसकी आँखें खुलीं। वह मंदिर के फर्श पर पड़ा हुआ था। उसे एहसास हुआ कि यह सब एक सपना था।

सीख और नया जीवन

तभी एक दिव्य दूत प्रकट हुआ और कहा, “सेनटारो, तुम्हारी इच्छा पूरी की गई थी। तुमने देखा कि अमरता का जीवन कैसा होता है। लेकिन जब मृत्यु निकट आई, तो तुमने उससे बचने के लिए पुकार लगाई। इसका अर्थ है कि जीवन और मृत्यु दोनों का अपना महत्व है।”

“अब अपने घर लौटो, एक अच्छा और परिश्रमी जीवन जियो। अपने पूर्वजों के संस्कारों का पालन करो, अपने परिवार का भरण-पोषण करो, और समाज के लिए उपयोगी बनो। यही सच्चा जीवन है, न कि अमरता की लालसा।”

सेनटारो ने इस सीख को हृदय से स्वीकार किया। वह अपने गाँव लौटा, एक अच्छा नागरिक बना, और सुखमय जीवन व्यतीत किया।

इस कहानी का मुख्य संदेश यही है कि हमें मृत्यु से डरने की बजाय अपने वर्तमान जीवन को बेहतर बनाने पर ध्यान देना चाहिए। आत्म-अनुशासन, परिश्रम, और कर्तव्यनिष्ठा से ही सच्चा सुख प्राप्त किया जा सकता है।

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References:

Ozaki, Y. (1908). The Story of the Man Who Did Not Wish to Die. Japanese Fairy Tales (Lit2Go Edition). Retrieved February 20, 2025, from https://etc.usf.edu/lit2go/72/japanese-fairy-tales/4876/the-story-of-the-man-who-did-not-wish-to-die/

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