किंतारो: स्वर्ण बालक की अद्भुत कहानी (Kintaro, the Golden Boy)

(यह कहानी जापान की एक पुरानी लोककथा पर आधारित है)

अशिगारा पर्वतों (Ashigara Mountains) में जन्मा बलशाली बालक

बहुत समय पहले, क्योटो (Kyoto) नगर में किंतोकि (Kintoki) नामक एक वीर योद्धा रहता था। वह साहसी, निडर और न्यायप्रिय था। भाग्य ने उसके जीवन में एक सुंदर स्त्री को भेजा, जिससे उसने प्रेमपूर्वक विवाह किया। परंतु दुर्भाग्यवश, कुछ ईर्ष्यालु दरबारी उसके विरुद्ध षड्यंत्र रचने लगे। उनके कपट ने उसे राजदरबार से निष्कासित करवा दिया।  

अपने सम्मान की हानि से व्यथित किंतोकि अधिक दिनों तक जीवित न रह सका और संसार से विदा हो गया। उसकी मृत्यु के बाद, उसकी युवा पत्नी अकेली रह गई। उसे भय था कि उसके पति के शत्रु अब उसे भी चैन से नहीं जीने देंगे। इस भय से वह अपने अजन्मे शिशु को लेकर घने जंगलों वाले अशिगारा पर्वतों (Ashigara Mountains) की ओर चली गई। वहाँ, उन घने, निर्जन वनों में, जहाँ केवल लकड़हारे आते-जाते थे, एक पुत्र का जन्म हुआ।

माँ ने उसे प्रेम से किंतारो” (Kintaro) नाम दिया, जिसका अर्थ था – स्वर्ण बालक”। किंतारो साधारण बालक नहीं था। उसमें असाधारण बल था! जैसे-जैसे वह बड़ा हुआ, उसकी शक्ति भी बढ़ती गई। मात्र आठ वर्ष की आयु में वह लकड़हारों की तरह पेड़ काट सकता था। उसकी माँ ने उसे एक बड़ा कुल्हाड़ा दिया, जिससे वह जंगल में जाकर लकड़हारों की सहायता करता। लकड़हारे उसे अद्भुत बालक” कहकर बुलाने लगे, और उसकी माँ को पहाड़ों की देखभाल करने वाली माता” कहा जाने लगा, क्योंकि कोई नहीं जानता था कि वह किसी उच्च कुल की स्त्री थी।

किंतारो के खेल भी अनोखे थे! जहाँ साधारण बच्चे गेंद से खेलते, वह पत्थरों और चट्टानों को टुकड़ों में तोड़ देता! उसकी अद्भुत शक्ति देखकर सभी दंग रह जाते!

किंतारो और जंगल के अनोखे साथी

अन्य बच्चों से बिल्कुल अलग, किंतारो पहाड़ों के बीहड़ जंगलों में अकेला बड़ा हुआ। न कोई दोस्त, न कोई खेल का साथी—बस विशाल वृक्ष, कल-कल बहती नदियाँ और घने जंगल! लेकिन किंतारो अकेलापन महसूस नहीं करता था, क्योंकि उसने जंगल के जानवरों को अपना मित्र बना लिया। धीरे-धीरे वह उनकी भाषा समझने लगा और उनसे बातें करने की कला सीख गया।

समय के साथ, ये जंगली जानवर उससे घुल-मिल गए और उसे अपना स्वामी मानने लगे। वे उसके सेवक और संदेशवाहक की तरह काम करने लगे। किंतारो के सबसे प्रिय साथी थे—भालू, हिरण, बंदर और खरगोश

भालू अक्सर अपने छोटे-छोटे शावकों को लेकर आता, ताकि वे किंतारो के साथ खेल सकें। जब भालू उन्हें वापस ले जाने आता, तो किंतारो उसकी पीठ पर चढ़ जाता और मस्ती से उसकी गुफा तक सवारी करता। हिरण भी उसका प्रिय मित्र था। किंतारो उसे प्यार से गले लगाता, यह दिखाने के लिए कि उसके लंबे सींग उसे डराते नहीं हैं।

बंदर की फुर्ती, खरगोश की चपलता, भालू की ताकत और हिरण की गति—किंतारो के दोस्तों में हर किसी की अपनी विशेषता थी। जंगल में उनका जीवन मस्ती और रोमांच से भरा था। वे कभी खेलते, कभी नई चीजें सीखते और कभी-कभी शरारतें भी करते।

अनोखा कुश्ती मुकाबला

एक दिन, रोज़ की तरह, किंतारो अपने चार जंगली दोस्तों—भालू, हिरण, बंदर और खरगोश—के साथ पहाड़ों की ओर निकला। ऊँचे-नीचे रास्तों से होते हुए, वे अचानक एक हरे-भरे मैदान में पहुँच गए। यहाँ रंग-बिरंगे जंगली फूल खिले थे, ठंडी हवा बह रही थी, और वातावरण खेल-कूद के लिए एकदम सही था।

अरे, यह तो कुश्ती के लिए बढ़िया जगह है!” किंतारो ने उत्साह से कहा।
तुम सब क्या कहते हो? क्यों न आज एक कुश्ती प्रतियोगिता हो जाए?”

सबसे बड़ी और सबसे ताकतवर भालूनी ने सबसे पहले हामी भरी—
वाह! यह तो बड़ा मज़ेदार होगा। मैं सबसे शक्तिशाली हूँ, इसलिए मैं कुश्ती का अखाड़ा तैयार करूँगी!”

भालूनी ने तुरंत मिट्टी खोदकर और उसे समतल करके एक अखाड़ा बना दिया। हिरण, बंदर और खरगोश भी उसकी मदद करने लगे। जब अखाड़ा तैयार हो गया, किंतारो ने घोषणा की—

अब खेल शुरू होगा! सबसे पहले बंदर और खरगोश आमने-सामने आएँगे। हिरण इस मुकाबले का पंच बनेगा!”

और फिर शुरू हुआ बंदर और खरगोश की कुश्ती का खेल

लाल-पीठ! लाल-पीठ!” हिरण ने बंदर को बुलाया।
लंबे-कान! लंबे-कान!” फिर उसने खरगोश को पुकारा।
क्या तुम दोनों तैयार हो?”

जैसे ही हिरण ने हवा में एक पत्ता उठाकर इशारा किया, बंदर और खरगोश पूरे जोश से भिड़ गए—योइशो! योइशो!”

खरगोश ने अपनी फुर्ती दिखाई, लेकिन बंदर भी किसी से कम नहीं था। कभी एक आगे बढ़ता, तो कभी दूसरा। भालू भी गरजकर चीखी—लंबे-कान! मजबूत रहो, हार मत मानो!”

अंत में, खरगोश ने चालाकी से बंदर को धक्का दिया, और धड़ाम! बंदर सीधा अखाड़े के बाहर जा गिरा। उसने अपनी पीठ सहलाई और चिल्लाया—ओह, मेरी कमर! बहुत ज़ोर से चोट लगी!”

हिरण ने अपना पत्ता उठाया और घोषणा की—
इस राउंड का विजेता—खरगोश!”

किंतारो ने अपने टिफिन से एक चावल का लड्डू निकाला और कहा—
यह रहा इनाम! तुमने यह मेहनत से जीता है!”

लेकिन बंदर हार मानने वालों में से नहीं था। वह तुनककर बोला—
यह कोई सही मुकाबला नहीं था! मेरा पैर फिसल गया। मुझे दोबारा मौका दो!”

किंतारो ने सहमति दी, और कुश्ती फिर से शुरू हुई। लेकिन इस बार बंदर ने चालाकी दिखाई—जैसे ही लड़ाई शुरू हुई, उसने झपटकर खरगोश के लंबे कान पकड़ लिए! दर्द से तिलमिलाकर खरगोश लड़खड़ाया, और बंदर ने उसे ज़ोर से पटक दिया।

इस बार बंदर जीता! किंतारो ने उसे भी एक चावल का लड्डू दिया, और बंदर अपनी जीत की खुशी में अपनी पिछली चोट भूल गया।

इसके बाद, हिरण और खरगोश के बीच मुकाबला हुआ। सब ने खूब मज़े किए—कभी एक जीतता, कभी दूसरा!

जब सभी थक गए, तो किंतारो ने हँसते हुए कहा—
आज के लिए बस इतना ही! यह जगह कितनी मज़ेदार है! कल फिर आएँगे और नए खेल खेलेंगे। चलो, अब घर लौटते हैं!”

किंतारो सबसे आगे चल पड़ा, और उसके पीछे उसके चार प्यारे दोस्त—भालू, हिरण, बंदर और खरगोश—खुशी-खुशी चल दिए।

किंतारो का अद्भुत साहस

कुछ दूर चलने के बाद, किंतारो और उसके चार दोस्त—भालू, हिरण, बंदर और खरगोश—एक गहरी घाटी में बहती हुई नदी के किनारे पहुँचे। नदी का पानी ज़ोरों से बह रहा था—धड़ाम, धड़ाम!” की आवाज़ गूँज रही थी। लेकिन वहाँ कोई पुल नहीं था जिससे वे पार जा सकें।

सभी जानवर चिंतित होकर सोचने लगे, अब हम नदी पार कैसे करें? अगर रास्ता नहीं मिला, तो घर कैसे जाएँगे?”

किंतारो मुस्कुराया और बोला—
चिंता मत करो! मैं अभी एक मज़बूत पुल बनाता हूँ!”

चारों जानवर आश्चर्य से उसकी ओर देखने लगे। किंतारो ने किनारे पर उगे बड़े-बड़े पेड़ों को ध्यान से देखा। फिर वह एक विशाल पेड़ के पास रुका, जिसकी जड़ें नदी के किनारे फैली हुई थीं।

उसने अपनी पूरी ताकत लगाकर पेड़ को ज़ोर से खींचा—एक बार, दो बार, तीन बार!

तीसरी बार जैसे ही उसने ज़ोर लगाया, पेड़ की जड़ें उखड़ गईं और धड़ाम!” की ज़ोरदार आवाज़ के साथ पेड़ गिर पड़ा, जिससे नदी पर एक मजबूत पुल बन गया।

देखा! मेरा पुल तैयार है। यह एकदम मज़बूत है, मेरे पीछे आओ!” किंतारो ने गर्व से कहा और आगे बढ़ गया।

चारों जानवर चकित रह गए। उन्होंने कभी किसी को इतनी ताकतवर नहीं देखा था। वे पुल पार करते हुए बार-बार यही बोल रहे थे—
अरे! यह कितना बलशाली है! यह कितना बलशाली है!”

एक अनजान आदमी की नज़र

नदी के पास ही एक चट्टान पर खड़ा एक लकड़हारा यह सब देख रहा था। जब उसने देखा कि एक छोटा-सा बच्चा इतनी आसानी से एक पूरा पेड़ उखाड़कर पुल बना सकता है, तो वह अवाक् रह गया।

वह अपनी आँखें मलकर सोचने लगा, यह कोई साधारण लड़का नहीं हो सकता! आखिर यह किसका बेटा है? मुझे यह पता लगाना होगा!”

लकड़हारा तुरंत किंतारो के पीछे-पीछे चल पड़ा। किंतारो को इस बारे में कुछ पता नहीं था। जब वह अपने घर पहुँचा, तो उसके जानवर अपने-अपने ठिकानों की ओर चले गए, और किंतारो अपनी माँ के पास पहुँचा।

जैसे ही उसने घर में कदम रखा, वह चहककर बोला—
ओक्का-सान (माँ) [Okkasan (mother)], मैं आ गया!”

उसकी माँ, यामा-उबा (Yama-uba), उसे देखकर मुस्कुराई और बोली—
ओ, किंबो (Kimbo)! आज बहुत देर कर दी तुमने! मैं तो चिंता करने लगी थी। तुम इतनी देर कहाँ थे?”

मैं अपने दोस्तों के साथ पहाड़ों में गया था। वहाँ मैंने भालू, हिरण, बंदर और खरगोश की कुश्ती करवाई कि देखूँ कौन सबसे ताकतवर है। हमने खूब मज़े किए और कल फिर वहीं जाने वाले हैं!”

माँ ने मज़ाक में पूछा—
तो बताओ, कौन सबसे बलशाली निकला?”

किंतारो ने गर्व से सीना तानकर कहा—
अरे माँ! यह भी कोई पूछने की बात है? सबसे ताकतवर तो मैं हूँ! मुझे किसी से कुश्ती लड़ने की ज़रूरत ही नहीं पड़ी!”

माँ हँसते हुए बोली—
अच्छा! लेकिन तुम्हारे बाद सबसे ताकतवर कौन था?”

भालू!” किंतारो ने झट से जवाब दिया।

और उसके बाद?”

भालू के बाद बताना मुश्किल है, क्योंकि हिरण, बंदर और खरगोश तीनों ही लगभग बराबर थे।”

तभी बाहर से एक भारी आवाज़ आई—
सुनो छोटे लड़के! अगली बार जब कुश्ती होगी, तो इस बूढ़े आदमी को भी अपने साथ ले चलना। मुझे भी खेल में शामिल होना है!”

किंतारो और उसकी माँ चौंक गए। उन्होंने देखा कि एक अनजान लकड़हारा दरवाजे पर खड़ा मुस्कुरा रहा था।

तुम कौन हो?” दोनों ने एक साथ पूछा।

लकड़हारा ज़ोर से हँसा और बोला—
यह बात बाद में! पहले देख लेते हैं कि तुम और मैं, दोनों में से ज्यादा ताकतवर कौन है!”

किंतारो, जो हमेशा ताकत आज़माने को तैयार रहता था, तुरंत बोला—
चलो, कोशिश कर लेते हैं! लेकिन जो भी हारे, वह नाराज़ नहीं होगा!”

किंतारो बनाम रहस्यमयी लकड़हारा

लकड़हारे और किंतारो ने अपनी दाएँ हाथों को कसकर पकड़ लिया और कुश्ती शुरू हो गई।

दोनों अपनी पूरी ताकत लगा रहे थे। कभी किंतारो आगे बढ़ता, कभी लकड़हारा। लेकिन लकड़हारा भी असाधारण ताकत का था, इसलिए मुकाबला बराबरी का रहा।

कुछ देर बाद लकड़हारा मुस्कुराकर बोला—
वाह! तुम सच में बहुत ताकतवर हो! बहुत कम लोग मेरे हाथों को मोड़ सकते हैं, लेकिन तुमने बराबरी की लड़ाई लड़ी!”

फिर उसने गंभीर होकर कहा—
मैंने तुम्हें पहली बार नदी के किनारे देखा, जब तुमने वह विशाल पेड़ उखाड़कर पुल बनाया था। मैं अपनी आँखों पर यकीन नहीं कर पाया, इसलिए तुम्हारा पीछा किया। आज की कुश्ती ने मुझे यकीन दिला दिया कि तुम वाकई अद्भुत ताकत के मालिक हो! जब तुम बड़े हो जाओगे, तो पूरे जापान में तुमसे ताकतवर कोई नहीं होगा।”

लकड़हारे का असली परिचय

फिर लकड़हारा किंतारो की माँ की ओर मुड़ा और बोला—
माँ, क्या तुमने कभी सोचा है कि तुम्हारे बेटे को राजधानी ले जाकर उसे एक बहादुर योद्धा बनाया जाए?”

यामा-उबा ने गहरी साँस ली और कहा—
यह मेरा सपना था, लेकिन मेरे पास कोई ज़रिया नहीं था। बचपन में इसकी ताकत इतनी ज़्यादा थी कि इसे यहाँ पहाड़ों में छिपाकर रखना पड़ा, ताकि यह दूसरों को चोट न पहुँचा दे। मुझे हमेशा लगता था कि काश कोई इसे एक महान योद्धा बना पाता!”

लकड़हारा गंभीर स्वर में बोला—
“तो अब चिंता मत करो। मैं कोई साधारण लकड़हारा नहीं हूँ! मेरा नाम सादामित्सु (Sadamitsu) है, और मैं जापान के महान योद्धा मिनामोटो-नो-राइको (Minamoto-no-Raiko) का विश्वस्त सैनिक हूँ। हमारे स्वामी ने हमें ऐसे बच्चों की तलाश में भेजा है, जिनमें असाधारण शक्ति हो, ताकि उन्हें योद्धा बनाकर राजा की सेवा में रखा जाए। सौभाग्य से, मैंने तुम्हारे बेटे को खोज लिया!”

फिर उसने किंतारो की ओर देखा और गर्व से कहा—
अगर तुम चाहो, तो मैं तुम्हें अपने स्वामी के पास ले जा सकता हूँ, जहाँ तुम्हें असली योद्धा बनने का मौका मिलेगा!”

बेटे की विदाई और मां का संकल्प

दयालु सेनापति ने जैसे-जैसे अपनी योजना सामने रखी, मां का हृदय आनंद से भर उठा। यह तो उसके जीवन की सबसे बड़ी इच्छा पूरी होने का अवसर था—मरने से पहले अपने बेटे किंटारो को एक वीर समुराई के रूप में देखने का सपना!

मां ने श्रद्धा से सिर झुकाकर कहा—
यदि आप सचमुच अपने वचन के प्रति अटल हैं, तो मैं अपने बेटे को आपके हवाले करती हूँ।”

सारी बातचीत के दौरान किंटारो मां के पास बैठा ध्यान से सुन रहा था। जैसे ही मां ने अपनी बात पूरी की, वह उछल पड़ा—

आहा! कितनी खुशी की बात है! मैं सेनापति के साथ जाऊँगा और एक दिन महान समुराई बनूँगा!”

इस प्रकार किंटारो का भविष्य तय हो गया, और सेनापति उसे तुरंत राजधानी ले जाने का निर्णय कर चुके थे। यह कहने की आवश्यकता नहीं कि यामा-उबा (किंटारो की मां) के लिए अपने इकलौते पुत्र से बिछड़ना अत्यंत पीड़ादायक था। परंतु जापानी कहावत के अनुसार, उसने अपने दुख को चेहरे पर नहीं आने दिया।

उसने किंटारो के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहा—
बेटा, वचन दो कि हमेशा सच्चाई और वीरता के मार्ग पर चलोगे!”

किंटारो ने वादा किया—
मां, जब मैं दो तलवारें पहनने वाला वीर योद्धा बन जाऊँगा, तब मैं तुम्हारे लिए एक सुंदर घर बनवाऊँगा और जीवनभर तुम्हारी सेवा करूँगा!”

किंटारो के पशु-मित्र—भालू, हिरण, बंदर और खरगोश—जब यह खबर सुनते हैं कि उनका प्रिय मित्र हमेशा के लिए जा रहा है, तो वे दौड़कर उसके पास आते हैं।

क्या हम तुम्हारे साथ चल सकते हैं?” उन्होंने आशा से पूछा।

लेकिन जब उन्हें पता चला कि किंटारो अब कभी वापस नहीं आएगा, तो वे दुःखी हो गए और उसे पहाड़ के किनारे तक छोड़ने आए।

मां ने आँसू रोककर कहा—
किंबो, हमेशा अच्छे बनकर रहना!”

जंगल के सभी मित्रों ने हाथ जोड़कर कहा—
किंटारो जी, आपकी यात्रा शुभ हो!”

जैसे ही किंटारो और सेनापति आगे बढ़े, सभी पशु एक ऊँचे पेड़ पर चढ़ गए। वहाँ से उन्होंने अपने प्रिय मित्र की परछाई को धीरे-धीरे दूर जाते देखा, जब तक कि वह पूरी तरह आँखों से ओझल न हो गया।

किंटारो का पराक्रम और महानता

सेनापति सादामित्सु ने अपने भाग्य को सराहा कि उन्हें किंटारो जैसा अद्भुत बालक मिला। राजधानी पहुँचकर वे उसे तुरंत मिनामोटो-नो-राइको के पास ले गए और पूरी कहानी सुनाई।

महान योद्धा राइको यह सुनकर अत्यंत प्रसन्न हुए और किंटारो को अपनी सेना में शामिल कर लिया। उनकी सेना में चार वीर” (The Four Braves) नामक एक विशेष योद्धा दल था, जिसमें केवल सबसे शक्तिशाली और साहसी सैनिकों को स्थान मिलता था। किंटारो ने अपनी अनुपम शक्ति से शीघ्र ही इस दल में सबसे ऊँचा स्थान प्राप्त कर लिया।

दानव का आतंक और किंटारो की परीक्षा

कुछ समय बाद, राजधानी में यह खबर फैली कि एक भयंकर नरभक्षी दानव (राक्षस) ने पास के क्षेत्र में डेरा डाल लिया है और पूरे नगर में आतंक फैला रहा है।

महान योद्धा राइको ने किंटारो को आदेश दिया—
इस दानव का नाश करना अब तुम्हारा दायित्व है!”

किंटारो के हृदय में वीरता की लहर दौड़ गई। वह तत्क्षण तलवार संभालकर निकल पड़ा, और एक ही वार में दानव का विशाल सिर धड़ से अलग कर दिया। विजय प्राप्त कर वह गर्व से सिर उठाए राजधानी लौटा।

अब किंटारो पूरे देश का महान नायक बन चुका था। उसे शक्ति, सम्मान और समृद्धि का वरदान मिला। लेकिन अपने वचन को न भूलते हुए, उसने सबसे पहले अपनी मां के लिए एक सुंदर घर बनवाया, जहाँ वे अपने बेटे के साथ सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करने लगीं।

“जहाँ संकल्प और साहस हो, वहाँ कोई भी किंटारो बन सकता है!”

——- समाप्त ——-

Disclaimer:

The purpose of this translation of story in Hindi is to provide access to the content for Hindi-speaking readers. All rights to the original content remain with its respective author and publisher. This translation is presented solely for educational and informational purposes, and not to infringe on any copyright. If any copyright holder has an objection, they may contact us, and we will take the necessary action.

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