किस्मत का खेल [Hindi Story – The Play of Destiny]

“चलो पढ़ते हैं यह दिलचस्प कहानी, जो हमें सिखाती है कि किस्मत के सामने अकड़ दिखाना कभी-कभी भारी पड़ सकता है।”

सूरजपुर गाँव में एक घमंडी साहूकार रामलाल अपनी चालाकी और अकड़ के लिए मशहूर था। एक दिन वह नदी किनारे टहल रहा था, तभी उसने देखा एक अजनबी मिट्टी से भरा कटोरा पानी में उड़ेल रहा था।

रामलाल को यह हरकत अजीब लगी। वह पास जाकर बोला,
“भाई, ये क्या कर रहे हो? मिट्टी पानी में डालने से क्या होगा?”

वो अजनबी मुस्कुराया और बोला,
“मैं भाग्य हूँ। आज कौन क्या खाएगा, यह तय कर रहा हूँ।”

रामलाल ठहाका मारकर बोला,
“अच्छा! तो ज़रा मेरा दोपहर का खाना रोककर दिखाओ।”

भाग्य मुस्कराया, “अगर तू चाहता है, तो यही होगा।”

रामलाल ने मन ही मन सोचा, “चलो इसे गलत साबित कर दूँ।” वो बाजार से झटपट एक मोटी सी मछली खरीद लाया और पत्नी गौरी से बोला,
“इसे अच्छे से तल देना, आज दावत होगी!”

गौरी ने आज्ञा मानी। दोपहर में रामलाल खाना खाने बैठा। जैसे ही उसने हँसते हुए मछली की ओर हाथ बढ़ाया, गौरी भड़क उठी।

“क्या बात है? मुझ पर हँस रहे हो?”
रामलाल कुछ बोल पाता, उससे पहले ही बहस छिड़ गई। बात इतनी बढ़ी कि रामलाल गुस्से से मछली वहीं छोड़ बाहर चला गया।

कुछ देर बाद जब क्रोध ठंडा पड़ा, उसे याद आया— उसने भाग्य को ललकारा था।

उसने खुद ही खाना नहीं खाया, न भाग्य ने जबरन रोका… पर खाना छूटा जरूर। भाग्य ने चुपचाप अपनी ताकत दिखा दी थी।


सीख — घमंड का फल हमेशा कड़वा होता है। किस्मत को ललकारना आसान है, पर जब वह पलटती है, तो बिन कहे भी सबकुछ छीन लेती है।

इस सीख का जीवन में प्रयोग

हर हाल में विनम्रता और धैर्य बनाए रखें। दूसरों को नीचा दिखाकर भाग्य की परीक्षा लेना अंत में खुद पर भारी पड़ता है। जीवन में जो भी मिले, उसे कृतज्ञता से स्वीकार करना ही सच्ची समझदारी है।

Disclaimer:
This story has been adapted and rewritten based on an Indian folktale. The names, characters, and events have been modified to create a unique and original retelling while preserving the essence of the moral lesson. This version has been independently crafted to ensure originality and does not intend to infringe upon any copyrights or intellectual property rights of the original publication. Any similarities to actual persons, places, or events are entirely unintentional and a result of creative coincidence.

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