भारतवर्ष पर्व-त्योहारों की भूमि है। यहाँ हर ऋतु, हर अवसर, हर माह कोई-न-कोई पर्व अपनी विशेष पहचान के साथ मनाया जाता है। इन्हीं में से एक है गणपति उत्सव, जो भारतीय जनमानस की आस्था, श्रद्धा और सांस्कृतिक एकता का प्रतीक है। बुद्धि, विवेक और विघ्नहर्ता कहे जाने वाले श्रीगणेशजी का महत्व भारत में ही नहीं, बल्कि विश्वभर में स्थापित है। किसी भी शुभ कार्य का आरंभ गणेशजी के स्मरण और पूजन से ही किया जाता है। यह परंपरा मात्र धार्मिक आस्था ही नहीं, बल्कि एक गूढ़ जीवन-दर्शन भी है।
कहते हैं, “जहाँ गणपति, वहाँ सिद्धि-विनायक”। अर्थात जहाँ श्रीगणेशजी का वास होता है, वहाँ सफलता और शुभता अनिवार्य रूप से आती है। साहित्य-सृजन से लेकर विवाह, पूजा, गृहप्रवेश, व्यापार आरंभ तक हर शुभ अवसर पर पहले गणेशजी का आह्वान किया जाता है। वे विद्या, बुद्धि, विवेक और समृद्धि के अधिपति हैं। महाकाव्य ‘महाभारत’ के लेखन का कार्य भी व्यासजी ने उन्हीं के हाथों कराया था। यह प्रसंग गणेशजी की विद्वत्ता का प्रमाण है।
श्रीगणेश का स्वरूप भी अत्यंत प्रतीकात्मक और दर्शनीय है। उनका विशाल गजमुख जहाँ शक्ति और धैर्य का परिचायक है, वहीं उनका वाहन मूषक चंचल मन का प्रतीक माना जाता है। गणेशजी की पूजा द्वारा व्यक्ति अपने मन की चंचलता पर नियंत्रण पाकर विवेकशील बनता है। कहते भी हैं — “मन के जीते जीत है, मन के हारे हार।” इसी कारण गणपति की उपासना जीवन में संतुलन और सफलता प्रदान करती है।
गणेशजी के जन्म से जुड़ी कथा भी अत्यंत रोचक और प्रेरणादायी है। पौराणिक मान्यतानुसार, माता पार्वती ने स्नान करते समय अपने उबटन से एक बालक का निर्माण किया और उसे द्वारपाल बना दिया। शिवजी के आगमन पर बालक ने उन्हें रोक दिया। शिवजी ने क्रोधित होकर उसका सिर काट दिया। पार्वतीजी के विलाप पर शिवजी ने हाथी का सिर लगाकर बालक को पुनर्जीवित किया। यही प्रसंग भाद्रपद मास की शुक्ल चतुर्थी को गणेश चतुर्थी के रूप में मनाने की परंपरा का आधार बना।
महाराष्ट्र में इस पर्व का विशेष स्थान है। लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने स्वतंत्रता संग्राम के समय इसे सामाजिक एकता और ब्रिटिश शासन के विरुद्ध जनजागरण का माध्यम बनाया। वे जानते थे कि “जहाँ भीड़, वहाँ शक्ति।” इसीलिए सार्वजनिक गणपति महोत्सव की शुरुआत की गई, जो आज भी पूरे देश में हर्षोल्लास से मनाया जाता है।
गणेश चतुर्थी पर विभिन्न आकार और रंगों की सुंदर गणपति प्रतिमाएँ मिट्टी से बनती हैं। बड़े-बड़े पंडाल सजाए जाते हैं। चारों ओर भक्ति गीत, कीर्तन, नाटक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों से माहौल गणेशमय हो जाता है। विद्यालयों, मंदिरों और सार्वजनिक स्थलों पर गणेश पूजन, भजन-कीर्तन और धार्मिक आयोजन होते हैं। यह अवसर “एकता में शक्ति” का सुंदर उदाहरण प्रस्तुत करता है।
समापन अवसर पर गणेश प्रतिमाओं का विसर्जन जलाशयों में किया जाता है। विसर्जन-यात्रा में नृत्य, संगीत, ढोल-ताशे और भक्तों की जयकार से वातावरण गूंज उठता है। सभी भक्त गणपति बप्पा से अगले वर्ष जल्दी लौटने की प्रार्थना करते हैं — “गणपति बप्पा मोरया, पुढच्या वर्षी लवकर या।” यह वाक्य जनमानस में सजीव आस्था का प्रतीक है।
आज के युग में जहाँ तनाव, आपाधापी और आत्मकेन्द्रित जीवनशैली हावी है, ऐसे में गणपति उत्सव सामूहिक मेलजोल और सामाजिक समरसता का माध्यम बनता है। यह पर्व न केवल धर्म और परंपरा को जीवंत करता है, बल्कि भाईचारे, सामूहिक उत्तरदायित्व और सकारात्मक ऊर्जा का संचार भी करता है। यदि हम गणेशजी के गुणों — विवेक, धैर्य, बल और बुद्धिमत्ता को अपने जीवन में अपनाएँ, तो जीवन के अनेक संकट सहज ही दूर हो सकते हैं।
संक्षेप में, गणपति उत्सव भारतीय संस्कृति का एक अनुपम अध्याय है, जो श्रद्धा, भक्ति और सामाजिक सौहार्द्र का अद्भुत संगम है। यह पर्व हमें सिखाता है कि “संगठित समाज ही सशक्त समाज होता है।” इस अवसर पर हम भी प्रतिज्ञा करें कि श्रीगणेश के आशीर्वाद से अपने जीवन में विवेक, धैर्य और करुणा का संचार कर देश और समाज को उन्नति की ओर अग्रसर करेंगे।
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