(यह कहानी एक हिंदी लोककथा से प्रेरित है)
एक समय की बात है, दो भाई थे—सोमेश और हरीश। सोमेश बड़ा था और बहुत समझदार, जबकि हरीश भोला-भाला था। दोनों भाई मिलकर एक सराय चलाते थे, जहाँ राहगीरों को विश्राम और भोजन मिलता था।
अप्रत्याशित घटना
एक दिन सोमेश कहीं बाहर गया हुआ था। उसी दिन कुछ सैनिक वहाँ आए और ठहरने की जगह माँगने लगे। हरीश ने उन्हें किराया बताया, लेकिन सैनिकों को वह ज्यादा लगा और वे झगड़ने लगे। गुस्से में उन्होंने हरीश को पकड़ लिया और अपने साथ ले जाने लगे।
हरीश मदद के लिए चिल्लाया, जिसे सुनकर सोमेश भागकर वहाँ पहुँचा। उसने तुरंत स्थिति भाँपी और एक योजना बनाई।
सोमेश की योजना
सोमेश तेजी से पास के तालाब पर गया और वहाँ कुछ मिट्टी के बर्तन डुबो दिए। फिर वह सैनिकों के पास पहुँचा और कहा, “अगर आप मेरे भाई को छोड़ दें, तो मैं आपको एक ऐसा तालाब बताऊँगा जहाँ हर सुबह सोने की मछलियाँ मिलती हैं।”
सैनिक चौंक गए, “क्या सच में ऐसा तालाब है?”
सोमेश ने कहा, “हाँ, मैं आपको वहाँ ले चलूँगा, लेकिन पहले आप मेरे भाई को छोड़ दें।”
सैनिक मान गए और सोमेश के पीछे चल पड़े। जब वे तालाब पर पहुँचे, तो सोमेश ने पानी में हाथ डाला और मिट्टी के बर्तन निकालकर दिखाए, जो सोने जैसी चमक रहे थे। सैनिक खुश हो गए और लालच में आकर जल्दी-जल्दी बर्तन निकालने लगे।
इसी बीच, सोमेश और हरीश वहाँ से भाग निकले और अपनी सराय किसी और गाँव में खोल ली। कुछ दिन बाद जब सैनिक दोबारा तालाब पर गए, तो उन्हें वहाँ कुछ नहीं मिला।
नीती
“बुद्धिमत्ता से बड़ी से बड़ी समस्या हल की जा सकती है।”