जय जवान, जय किसान [Hindi Essay – (Soldiers and Farmers: Twin Pillars of India)]

भारत का इतिहास वीरता और परिश्रम की गौरवगाथाओं से भरा पड़ा है। जब-जब देश संकट में घिरा है, तब-तब इसकी मिट्टी से ऐसे लाल निकले हैं जिन्होंने अपने प्राणों की आहुति देकर मातृभूमि की रक्षा की है। सैनिकों की बहादुरी और किसानों की मेहनत, दोनों ने मिलकर भारत को आत्मनिर्भर और सुरक्षित राष्ट्र बनाया है। इसी भावना को अभिव्यक्त करते हुए हमारे दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने सन् 1965 में “जय जवान, जय किसान” का नारा दिया था, जो आज भी हमारी राष्ट्रीय चेतना का प्रतीक है।

जब पाकिस्तान ने भारत पर आक्रमण किया, तब शास्त्रीजी ने अपने छोटे कद और सरल व्यक्तित्व के बावजूद देश को दृढ़ नेतृत्व प्रदान किया। वे जानते थे कि देश को एक सूत्र में बाँधने के लिए सिर्फ रणनीति नहीं, बल्कि भावनात्मक एकता और आत्मबल की आवश्यकता है। उन्होंने सेना में उत्साह और किसानों में आत्मविश्वास भरने हेतु यह नारा दिया, जिससे संपूर्ण राष्ट्र एक स्वर में गूँज उठा। इस पंचाक्षरी मंत्र ने सैनिकों में अदम्य साहस भरा और उन्होंने शत्रुओं को मुँहतोड़ उत्तर दिया।

यह नारा सिर्फ युद्धकाल की प्रतिक्रिया नहीं था, बल्कि शास्त्रीजी की दूरदृष्टि का प्रमाण था। वे जानते थे कि यदि देश को सशक्त बनाना है, तो सैनिकों की बहादुरी के साथ-साथ कृषकों की उत्पादकता भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। शस्त्र और हल—दोनों हाथों की शक्ति का संतुलन ही राष्ट्र को आत्मनिर्भर बना सकता है। यही कारण है कि उन्होंने एक ही मंच से दोनों को सम्मान दिया।

भारतीय सैनिक सीमाओं की रक्षा करते हुए अपने प्राणों की आहुति देने में तनिक भी संकोच नहीं करते। उनके हृदय में देशभक्ति लहरों-सी बहती है। वहीं भारतीय किसान मिट्टी से सोना उगाकर पूरे देश का पेट भरता है। किसान की मेहनत और सैनिक का बलिदान—दोनों भारत की रीढ़ हैं। इन दोनों के बिना भारत की कल्पना अधूरी है।

आज के परिप्रेक्ष्य में भी यह नारा उतना ही प्रासंगिक है। जब एक ओर देश अपनी सुरक्षा चुनौतियों से जूझ रहा है, वहीं दूसरी ओर जलवायु परिवर्तन, प्राकृतिक आपदाएँ और बदलते कृषि परिदृश्य के कारण किसान संकट में हैं। ऐसे में सरकार द्वारा “प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि” जैसी योजनाएँ, “वन रैंक वन पेंशन” की पहलें और सशस्त्र बलों के आधुनिकीकरण के प्रयास, इस नारे को नई ऊर्जा देते हैं।

हमारे देश की विविधता में एकता की सबसे बड़ी मिसाल सैनिक और किसान हैं। सैनिक न जाति देखता है, न धर्म—उसका धर्म सिर्फ देशभक्ति है। किसान न भाषा देखता है, न प्रदेश—उसका कर्म सिर्फ अन्न उपजाना है। इन दोनों की निष्ठा और समर्पण में कोई भेद नहीं होता। यही कारण है कि जब देश की बात आती है, तो सबसे पहले जवान और किसान का स्मरण होता है।

स्वतंत्रता के अमृतकाल में भारत को एक बार फिर इस मंत्र को दोहराने की आवश्यकता है, पर अब इसके मायने और भी व्यापक हो गए हैं। “जय जवान” का अर्थ केवल सेना की जय नहीं, बल्कि देश की आंतरिक और साइबर सुरक्षा में लगे सभी रक्षकों का गौरवगान है। वहीं “जय किसान” में अब स्मार्ट खेती, जैविक कृषि, जल संरक्षण और ग्रामीण नवाचार की बातें भी जुड़ गई हैं।

देश की युवा पीढ़ी को चाहिए कि वह इस मंत्र के मर्म को समझे। न केवल फौज में भर्ती होकर या कृषि विज्ञान में करियर चुनकर, बल्कि टेक्नोलॉजी, आंत्रप्रेन्योरशिप और शिक्षा के माध्यम से भी वे इस मंत्र को जीवंत बना सकते हैं। जिस दिन हर युवा के मन में यह जज़्बा होगा कि वह देश के लिए कुछ कर रहा है, उस दिन यह नारा केवल शब्द नहीं, बल्कि एक राष्ट्रीय आंदोलन बन जाएगा।

आज जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी “विकसित भारत@2047” की कल्पना कर रहे हैं, तो वह भी इसी आत्मनिर्भरता और एकजुटता की भावना से प्रेरित है। उनका “एक भारत, श्रेष्ठ भारत” का नारा भी शास्त्रीजी की भावना को ही विस्तार देता है। सैनिकों और किसानों के सशक्तिकरण के बिना कोई भी विकास अधूरा है।

हमारे सैनिक हर मौसम, हर परिस्थिति में डटे रहते हैं। कारगिल की बर्फीली चोटियों से लेकर सियाचिन की जानलेवा ठंड तक, वे बिना किसी अपेक्षा के देश की रक्षा करते हैं। वहीं किसान, सूखा, बाढ़, कीट और महँगाई से जूझते हुए भी खेतों में अपना पसीना बहाते हैं। इन दोनों की तपस्या को नमन करना ही इस नारे की सच्ची सार्थकता है।

आज भारत विश्व मंच पर अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुका है। हम रक्षा उपकरणों से लेकर खाद्य निर्यात तक, कई क्षेत्रों में आत्मनिर्भर हो चुके हैं। यह केवल सरकारों की नीतियों का परिणाम नहीं, बल्कि सैनिकों की सुरक्षा और किसानों की परिश्रमशीलता का फल है। यह नारा आज भी प्रेरणा का स्रोत है और आगे भी बना रहेगा।

इस पंचाक्षरी मंत्र की शक्ति केवल इतिहास की गाथाओं में नहीं, बल्कि वर्तमान की चुनौतियों से लड़ने की प्रेरणा में है। यदि हम हर क्षेत्र में इसी भावना से आगे बढ़ें—समानता, समर्पण और सेवा के भाव से—तो कोई कारण नहीं कि भारत दुनिया का नेतृत्व न करे।

अतः “देश की शान: सैनिक और किसान का गौरवगान” केवल एक नारा नहीं, एक जीवन मंत्र है। यह हमें याद दिलाता है कि भारत की आत्मा उन हाथों में बसती है जो सीमा पर बंदूक थामे हैं और खेत में हल चलाते हैं। जब तक ये दोनों मजबूत हैं, भारत अपराजेय रहेगा।

अस्वीकरण (Disclaimer):
यह निबंध केवल शैक्षणिक संदर्भ और प्रेरणा हेतु प्रस्तुत किया गया है। पाठकों/विद्यार्थियों को सलाह दी जाती है कि वे इसे शब्दशः परीक्षा या प्रतियोगिताओं में न लिखें। इसकी भाषा, संरचना और विषयवस्तु को समझकर अपने शब्दों में निबंध तैयार करें। परीक्षा अथवा गृहकार्य करते समय शिक्षक की सलाह और दिशा-निर्देशों का पालन अवश्य करें।

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