“तमसो मा ज्योतिर्गमय” — अर्थात अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो। यह वैदिक मंत्र दीपावली के मूल भाव को सहजता से अभिव्यक्त करता है। दीपावली केवल एक धार्मिक पर्व नहीं है, बल्कि यह जीवन में नई शुरुआत, सकारात्मकता और आत्मिक प्रकाश के स्वागत का सजीव प्रतीक है। यह पर्व भारतीय संस्कृति में अंधकार से उजाले, अधर्म से धर्म और निराशा से आशा की ओर बढ़ने का उत्सव है।
‘दीपावली’ शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है—‘दीप’ अर्थात दीपक और ‘आवली’ अर्थात पंक्ति। इसका शाब्दिक अर्थ है ‘दीपों की पंक्ति’। यह नाम इस त्योहार के स्वरूप को पूरी तरह से दर्शाता है, क्योंकि इस दिन घरों की छतों, दरवाज़ों, खिड़कियों और आंगनों में दीयों की पंक्तियाँ सजती हैं। मिट्टी के दीयों की रौशनी जैसे हर मन को आलोकित करती है और वातावरण को दिव्यता से भर देती है।
दीपावली का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व अत्यंत गहरा है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, जब भगवान श्रीराम माता सीता और भ्राता लक्ष्मण के साथ चौदह वर्षों का वनवास समाप्त कर अयोध्या लौटे थे, तो अयोध्यावासियों ने उनके स्वागत में दीप जलाए थे। यह उल्लासपूर्ण क्षण ‘अधर्म पर धर्म की विजय’ और ‘न्याय की पुनर्स्थापना’ का प्रतीक बन गया। तभी से इस दिन को दीपों के पर्व के रूप में मनाया जाता है।
धार्मिक दृष्टिकोण से दीपावली को माता लक्ष्मी के पूजन से जोड़ा गया है। माता लक्ष्मी को धन, समृद्धि और वैभव की देवी माना जाता है। उनका वाहन उल्लू माना जाता है जो संकेत करता है कि लक्ष्मी अज्ञानता में भी रास्ता ढूंढ सकती हैं। अमावस्या की रात को माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है, और यह विश्वास किया जाता है कि जो व्यक्ति इस दिन अपने घर को स्वच्छ रखता है और श्रद्धा से पूजा करता है, वहां माँ लक्ष्मी का वास होता है।
यह पर्व केवल एक दिन का नहीं, अपितु पाँच दिनों तक चलने वाला उल्लासमय उत्सव है। इसकी शुरुआत होती है धनतेरस से, जिसे कार्तिक मास की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन लोग अपने सामर्थ्य के अनुसार चाँदी, तांबे या पीतल के बर्तन, आभूषण या अन्य वस्तुएं खरीदते हैं। इस दिन को स्वास्थ्य, समृद्धि और लंबी उम्र की कामना से जोड़ा गया है। चिकित्सकों के देवता धन्वंतरि की भी पूजा इसी दिन होती है।
इसके बाद आता है नरक चतुर्दशी जिसे ‘छोटी दीपावली’ भी कहा जाता है। यह दिन बुराइयों के विनाश और आत्मशुद्धि का प्रतीक है। इस दिन विशेष स्नान, घर की सफाई और दीपदान का विधान होता है। ‘यम दीप’ जलाने की परंपरा है जिससे मृत्यु के देवता यमराज प्रसन्न होते हैं और अकाल मृत्यु का भय टलता है।
फिर आता है मुख्य दीपावली, जो इस पर्व का केंद्रीय दिन होता है। यही वह रात होती है जब अमावस्या के अंधकार को हज़ारों दीपों की रौशनी से पराजित किया जाता है। घर-घर में लक्ष्मी और गणेश जी की पूजा होती है। व्यापारी इस दिन को अपने नए वित्तीय वर्ष की शुरुआत के रूप में मानते हैं और नवीन खाता-बही की शुरुआत करते हैं। इस रात को मिठाई, उपहार, और आतिशबाज़ियों से घर-आँगन गूंज उठते हैं।
मुख्य दीपावली के अगले दिन गोवर्धन पूजा का आयोजन होता है। यह पर्व भगवान श्रीकृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत उठाकर गोकुलवासियों की रक्षा करने की कथा से जुड़ा हुआ है। इस दिन गोबर से गोवर्धन बनाकर उनकी पूजा की जाती है। इसे अन्नकूट के रूप में भी मनाया जाता है, जिसमें विविध व्यंजन बनाकर भगवान को अर्पित किए जाते हैं।
अंतिम दिन होता है भाई दूज, जो भाई-बहन के प्रेम और स्नेह का पर्व है। इस दिन बहनें अपने भाइयों को तिलक करती हैं और उनकी लंबी उम्र और सुख-समृद्धि की कामना करती हैं। भाई उन्हें उपहार देते हैं और यह संबंध प्रेम और विश्वास से और अधिक प्रगाढ़ हो जाता है।
दीपावली की तैयारियाँ कई दिन पहले से आरंभ हो जाती हैं। घर की सफाई, रंगाई-पुताई, सजावट, नए कपड़े, मिठाइयों का बनना आदि इस उत्सव का अभिन्न हिस्सा है। मुहावरे में कहें तो “घर-घर में जैसे उत्सव उतर आता है।” महिलाएँ रसोई में व्यस्त हो जाती हैं, बच्चे सजावट में जुट जाते हैं, और पुरुष बाजारों से त्योहार का सामान लाते हैं।
बच्चों के लिए यह पर्व विशेष रूप से आनंददायक होता है। वे रंग-बिरंगी फुलझड़ियाँ, चक्री, अनार आदि आतिशबाज़ियाँ जलाते हैं। रंगोली बनाना, दीयों को रंगना, कागज की झालरें सजाना, घर के दरवाज़ों पर बंदनवार लगाना—इन सबमें बच्चों की उत्साह भरी सहभागिता होती है।
वर्तमान युग में दीपावली का स्वरूप तकनीकी और पर्यावरणीय चेतना से जुड़ गया है। लोग अब डिजिटल ग्रीटिंग्स, ऑनलाइन गिफ्टिंग, और LED लाइट्स के माध्यम से उत्सव मनाने लगे हैं। साथ ही, पर्यावरण संरक्षण की भावना को लेकर अब ईको-फ्रेंडली दीये, कम धुएँ वाले पटाखे और प्लास्टिक-मुक्त सजावट का चलन बढ़ रहा है। यह हमारी संस्कृति को आधुनिकता से जोड़ने का सराहनीय प्रयास है।
हालाँकि इस उत्सव की चमक में कुछ छायाएँ भी हैं। कई लोग इस दिन जुए का आयोजन करते हैं, जो सामाजिक और नैतिक दृष्टि से अनुचित है। अधिक पटाखे चलाना न केवल ध्वनि और वायु प्रदूषण बढ़ाता है, बल्कि वृद्धजनों, बच्चों और पशुओं के स्वास्थ्य को भी प्रभावित करता है। साथ ही, हर वर्ष दीपावली पर आग लगने और चोटें लगने की खबरें मिलती हैं।
दीपावली का मूल उद्देश्य केवल बाह्य प्रकाश नहीं, बल्कि आत्मिक प्रकाश की ओर अग्रसर होना है। यह त्योहार हमें यह सिखाता है कि हम अपने अंदर के अंधकार—लोभ, क्रोध, ईर्ष्या, आलस्य—को मिटाकर ज्ञान, प्रेम और शांति के दीप जलाएँ। “मन के हारे हार है, मन के जीते जीत” इस भावना को अपनाकर दीपावली को वास्तव में सार्थक बनाया जा सकता है।
अंततः दीपावली न केवल दीयों की जगमगाहट है, बल्कि यह जीवन में उजाले, उत्सव, आत्मिक शुद्धता और परस्पर प्रेम का पर्व है। यह वह समय होता है जब हम बीते समय के अंधकार को पीछे छोड़कर भविष्य की ओर सकारात्मक दृष्टिकोण से बढ़ते हैं। दीपावली हमें यही संदेश देती है कि “हर अंधेरी रात के बाद एक सुनहरी सुबह होती है।” अतः इस पावन अवसर पर आइए हम सब मिलकर न केवल अपने घरों को, बल्कि अपने मन को भी ज्ञान और सच्चाई के प्रकाश से आलोकित करें।
अस्वीकरण (Disclaimer):
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