भारत में शिक्षित वर्ग की बेरोजगारी आज केवल एक आर्थिक समस्या नहीं, बल्कि सामाजिक, मानसिक और राष्ट्रीय संकट का रूप ले चुकी है। जब वर्षों की मेहनत, परीक्षाओं के बोझ और उम्मीदों की गठरी लेकर युवा डिग्री हासिल करता है, तो उसके मन में उज्ज्वल भविष्य की कल्पना होती है। लेकिन जब वही डिग्री नौकरी की दहलीज पर बेबस हो जाती है, तब उसका आत्मविश्वास चकनाचूर हो जाता है। “पढ़ो और आगे बढ़ो” जैसी प्रेरणाएँ तब खोखली प्रतीत होती हैं, जब डिग्री मिलने के बाद भी जीवन में स्थायित्व का नामोनिशान नहीं रहता।
शिक्षित वर्ग की बेरोजगारी का एक बड़ा कारण हमारी शिक्षा व्यवस्था है, जो अभी भी पुस्तकीय ज्ञान और परीक्षाओं की संकीर्ण परिधि में ही सिमटी हुई है। यह शिक्षा न तो व्यावसायिक है और न ही जीवनोपयोगी। विद्यार्थियों को वास्तविक जीवन की चुनौतियों से रूबरू कराने के बजाय उन्हें अंक-प्रतियोगिता की दौड़ में झोंक दिया जाता है। परिणामस्वरूप, वे मानसिक थकावट, निराशा और सामाजिक हीनता से ग्रस्त हो जाते हैं।
आज स्थिति यह है कि देश के विश्वविद्यालयों से लाखों छात्र एम.ए., एम.एससी., बी.एड., पीएचडी की डिग्रियाँ लेकर निकलते हैं, पर उनके लिए रोजगार के अवसर सीमित हैं। हर शिक्षित युवक सरकारी नौकरी की ओर दौड़ता है, जिससे प्रतिस्पर्धा इतनी बढ़ गई है कि 10 रिक्तियों के लिए लाखों आवेदन आते हैं। यह असंतुलन न केवल युवाओं को कुंठित करता है, बल्कि देश की प्रतिभा को भी निष्क्रिय बना देता है।
एक और बड़ा कारण यह है कि पारंपरिक व्यवसायों को हेय दृष्टि से देखा जाता है। खेती, दस्तकारी, कुटीर उद्योग, पशुपालन आदि को शहरी शिक्षित वर्ग अपनाना नहीं चाहता, क्योंकि इन्हें निम्न समझा जाता है। जबकि यह क्षेत्र रोजगार की विशाल संभावनाएँ रखते हैं। यदि वैज्ञानिक ढंग से खेती या मधुमक्खी पालन जैसे कार्य किए जाएँ, तो ग्रामीण भारत आत्मनिर्भर बन सकता है और शहरों पर दबाव भी कम होगा।
वर्तमान समय में तकनीकी शिक्षा और कौशल आधारित कार्यक्रमों की आवश्यकता अत्यंत है। आईटीआई, पॉलिटेक्निक, डिजिटल मार्केटिंग, ग्राफिक डिजाइनिंग, एआई, रोबोटिक्स जैसी शिक्षा युवाओं को स्वावलंबी बना सकती है। सरकार द्वारा प्रारंभ किए गए ‘स्किल इंडिया’ और ‘स्टार्टअप इंडिया’ जैसे अभियानों ने कुछ हद तक जागरूकता बढ़ाई है, लेकिन अभी भी यह शहरों तक सीमित है। गाँवों में इन योजनाओं की पहुँच जरूरी है।
शिक्षा का उद्देश्य केवल नौकरी पाना नहीं होना चाहिए, बल्कि यह युवाओं को ऐसा आत्मनिर्भर बनाना चाहिए कि वे स्वयं रोजगार का सृजन कर सकें। आज के बदलते युग में “नौकरी खोजो” की जगह “रोजगार पैदा करो” की भावना जागृत करनी होगी। इसके लिए मानसिकता में भी बदलाव जरूरी है — “सरकारी नौकरी ही सम्मानजनक है” इस सोच से बाहर आना होगा।
समस्या के समाधान हेतु शिक्षा प्रणाली में क्रांतिकारी बदलाव की आवश्यकता है। पाठ्यक्रमों को व्यावहारिक, तकनीकी और उद्यमिता आधारित बनाया जाए। उच्च शिक्षा में प्रवेश से पहले युवाओं की रुचि, क्षमता और सामाजिक आवश्यकता के आधार पर मार्गदर्शन किया जाए। जैसे विकसित देशों में करियर काउंसलिंग और अप्टिट्यूड टेस्ट अनिवार्य होते हैं, वैसे ही भारत में भी छात्रों की अभिरुचि के अनुसार उन्हें सही दिशा देनी चाहिए।
वर्तमान में डिजिटल युग ने रोजगार की नई संभावनाएँ खोल दी हैं। यूट्यूब चैनल, ऑनलाइन ट्यूटरिंग, फ्रीलांसिंग, कंटेंट राइटिंग, ऐप डेवलपमेंट जैसे क्षेत्रों में हजारों युवा घर बैठे लाखों कमा रहे हैं। लेकिन दुर्भाग्य यह है कि अधिकांश स्कूल-कॉलेज अभी भी इन क्षेत्रों की जानकारी तक छात्रों को नहीं दे पाते। यदि युवाओं को इन विकल्पों की जानकारी मिले, तो वे आत्मनिर्भर बन सकते हैं।
इसके साथ ही ‘शिक्षा से उद्यमिता’ को बढ़ावा देने की जरूरत है। सरकार और निजी संस्थानों को मिलकर बिज़नेस इनक्यूबेटर्स, स्टार्टअप फंड्स और ऑनलाइन प्रशिक्षण देने चाहिए। ग्रामीण क्षेत्रों में ‘ई-चौपाल’ और ‘डिजिटल ग्राम’ जैसे उपक्रमों को विस्तार देना चाहिए, ताकि वहाँ के युवक-युवतियाँ भी आत्मनिर्भर बन सकें।
नारी शिक्षा के बढ़ते प्रतिशत ने भी बेरोजगारी का एक नया आयाम जोड़ा है। लाखों युवतियाँ उच्च शिक्षा प्राप्त कर रही हैं, लेकिन सामाजिक और पारिवारिक वर्जनाओं के कारण वे रोजगार में भाग नहीं ले पातीं। आवश्यकता इस बात की है कि महिलाओं को भी समान अवसर और प्रोत्साहन दिया जाए। घर से ही शुरू होने वाले व्यवसाय, ऑनलाइन कार्य और स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से उन्हें रोजगार से जोड़ा जाए।
शिक्षित युवकों में बढ़ती बेरोजगारी से उनमें मानसिक अवसाद, असंतोष और आक्रोश उत्पन्न हो रहा है। कई बार यह युवा दिशाहीन होकर अपराध, नशे या आत्महत्या तक पहुँच जाते हैं। इसलिए केवल सरकारी योजनाओं से नहीं, बल्कि समाज, परिवार, और शैक्षणिक संस्थानों को भी इस दिशा में सक्रिय भूमिका निभानी होगी। युवाओं को यह विश्वास दिलाना होगा कि हर हुनर की कद्र है और हर रास्ता नौकरी से ही नहीं, स्वाभिमान से भी बनता है।
देश के विकास के लिए आवश्यक है कि शिक्षित वर्ग की शक्ति को रचनात्मक दिशा मिले। जैसे पं. नेहरू ने कहा था – “भारत को युवा भारत बनाना है,” वैसे ही आज का भारत तभी मजबूत होगा जब उसके शिक्षित युवा आत्मनिर्भर, सृजनशील और रोजगार प्रदाता बनें। इसके लिए शिक्षा, नीति, समाज और युवाओं को साथ मिलकर एक नई दिशा की ओर बढ़ना होगा।
निष्कर्षतः, शिक्षित वर्ग की बेरोजगारी एक जटिल परंतु हल की जा सकने वाली समस्या है। इसके लिए एक समन्वित, व्यावहारिक, दूरदर्शी और मानवीय दृष्टिकोण अपनाना होगा। यह कहना गलत नहीं होगा — “जहाँ चाह वहाँ राह,” यदि समाज, सरकार और युवा मिलकर इस राह पर चलें, तो शिक्षा बेरोजगारी का कारण नहीं, बल्कि आत्मनिर्भर भारत की पहचान बन सकती है।
अस्वीकरण (Disclaimer):
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