पूछ वाले मनुष्य [Hindi Story – When Human Had Tails]

“इस पुरानी लोककथा में छिपा है एक ऐसा सबक, जो हमें अहंकार, दिखावे और बेवजह की शान-शौकत के पीछे भागने के अंजाम का आईना दिखाता है। आइए, इस रोचक कथा के ज़रिए समझें कि क्यों विनम्रता और सादगी ही जीवन की असली पूँजी है।”

बहुत पुराने ज़माने की बात है। उस दौर में इंसानों के पीछे भी लंबी-लंबी पूँछें हुआ करती थीं। जहाँ आदमी जाता, उसकी पूँछ हवा में लहराती चलती। लोग अपनी पूँछ पर इतना इतराते थे मानो वही उनकी शान हो।

गाँव में जिसकी पूँछ सबसे लंबी होती, वही सबसे ऊँचे दर्जे का समझा जाता। औरतें अपनी पूँछ को मोतियों, रंग-बिरंगे धागों और चमचमाती घंटियों से सजातीं। चलतीं तो पूँछ की खनक और लहर सुनाई देती। छोटे बच्चों की पूँछ पर फूल बाँधकर, माएँ हँसते हुए कहतीं — देखो हमारा लाल, साक्षात चाँद का टुकड़ा है।”

छोटी पूँछ वाले लोग ताने सुनते। लोग कहते — बिन पूँछ का आदमी तो अधूरा ही समझो!” वहीं सबसे लंबी पूँछ वाला “सेठ भीमनाथ” गाँव का सरदार था। उसकी पूँछ इतनी लंबी थी कि चार आदमी उसे समेटने के लिए साथ चलते।

समस्या तब खड़ी हुई, जब आबादी बढ़ी। भीड़ में पूँछें एक-दूसरे से उलझने लगीं। बाज़ारों में रोज़ कोई न कोई किसी की पूँछ पर पैर रख देता और फिर अरे हाय! उफ्फ़!” की आवाज़ें सुनाई देतीं। गिरने-उठने का ऐसा सिलसिला चल पड़ा कि लोग परेशान हो उठे।

एक दिन भगवान नारायण ने सोचा — चलो धरती की सैर की जाए। जैसे ही वो गाँव के बाज़ार पहुँचे, वहाँ का नज़ारा देख हैरान रह गए। हर कोई पूँछ में उलझकर गिर रहा था। भगवान को ये देख हँसी आ गई।

वो ज़ोर-ज़ोर से ठहाके लगाने लगे। तभी अचानक एक बच्चा उनकी पूँछ पर कूद गया। भगवान फिसलकर सीधे एक पत्थर से टकराए और उनके दो दाँत टूट गए।

अब तो भगवान का ग़ुस्सा सातवें आसमान पर। उन्होंने गुस्से में अपनी पूँछ उखाड़कर फेंक दी। बाकी लोगों की पूँछें डर के मारे खुद-ब-खुद ज़मीन पर गिर पड़ीं।

सारा गाँव देखते ही देखते बिना पूँछ का हो गया। लोग काँपते हुए हाथ जोड़कर बोले — भगवान! हमसे भूल हो गई, माफ़ कर दीजिए।” लेकिन भगवान तमतमाए हुए पैर पटकते हुए वहाँ से निकल गए।

भगवान की पूँछ वहीं गिरकर एक ताड़ का पेड़ बन गई। लोग पहले कभी ऐसा पेड़ देखे नहीं थे। बाकी सबकी पूँछें लंबी घास में बदल गईं। बाद में उन्हीं घासों से झाड़ू बनाकर लोग अपने घर साफ करने लगे।


कहानी से सीख: घमंड और लालच की कोई उम्र नहीं होती। जो अपने अहम और दिखावे में डूबा रहता है, एक दिन वही सबसे ज़्यादा पछताता है।

Disclaimer:
This story has been adapted and rewritten based on an Indian folktale. The names, characters, and events have been modified to create a unique and original retelling while preserving the essence of the moral lesson. This version has been independently crafted to ensure originality and does not intend to infringe upon any copyrights or intellectual property rights of the original publication. Any similarities to actual persons, places, or events are entirely unintentional and a result of creative coincidence.

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