(एक जापानी लोककथा की रोमांचक गाथा)
बहुत समय पहले की बात है, जब जापान पर महान सूर्य देवी अमतेरासु (Amaterasu) के वंशज होहोदेमी (Hohodemi) का शासन था। वे अपनी पूर्वज देवी की तरह ही सुंदर और तेजस्वी थे, साथ ही असाधारण साहसी और बलशाली भी। उनकी विशेषता थी शिकार में अद्वितीय निपुणता, जिसके कारण वे पूरे राज्य में “यामा-साची-हिको” (Yama-sachi-hiko”) यानी “पहाड़ों के प्रसन्न शिकारी” ( “The Happy Hunter of the Mountains) के नाम से प्रसिद्ध थे।
उनके बड़े भाई का स्वभाव और रुचि बिल्कुल अलग थी। वे मछली पकड़ने की कला में इतने माहिर थे कि कोई भी मछुआरा उनकी बराबरी नहीं कर सकता था। इसी कारण लोग उन्हें “उमी-साची-हिको” (Unii-sachi-hiko) यानी “समुद्र के कुशल मछुआरे” (Skillful Fisher of the Sea) के नाम से जानते थे। दोनों भाई अपने-अपने कार्य में तल्लीन रहते और आनंद से जीवन व्यतीत कर रहे थे—एक पहाड़ों में शिकार करता, तो दूसरा समुद्र में मछली पकड़ता।
जब बदल गई तक़दीर…
एक दिन प्रसन्न शिकारी ने अपने भाई से कहा,
“भाई, मैं देखता हूँ कि तुम हर दिन अपनी मछली पकड़ने की डंडी लेकर समुद्र जाते हो और ढेर सारी मछलियाँ पकड़ कर लाते हो। और मैं अपने धनुष-बाण के साथ पहाड़ों और घाटियों में शिकार करने जाता हूँ। इतने वर्षों से हम अपने-अपने काम में लगे हुए हैं, पर अब मुझे लगता है कि हम कुछ नया करें। क्यों न हम एक दिन के लिए अपना कार्य बदल लें? तुम शिकार करो, और मैं मछली पकड़ने जाऊँ?”
कुशल मछुआरे ने कुछ देर सोचा, फिर सहमति में सिर हिलाते हुए कहा,
“ठीक है, क्यों नहीं? यह एक रोचक बदलाव होगा। लाओ, अपना धनुष-बाण दो, मैं अभी पहाड़ों में शिकार करने चला जाता हूँ!”
दोनों भाई अपनी-अपनी नयी भूमिका में निकल पड़े, लेकिन उन्हें बिल्कुल भी अंदाजा नहीं था कि यह निर्णय उनकी जिंदगी को पूरी तरह बदल देगा!
मछुआरा बना शिकारी और शिकारी बना मछुआरा
प्रसन्न शिकारी अपने भाई के अनमोल फिशिंग हुक और छड़ी लेकर समुद्र किनारे पहुँच गए। वे चट्टानों पर बैठे, कांटे में चारा लगाया और पानी में डाल दिया। वे बड़ी उत्सुकता से प्रतीक्षा करने लगे कि कब कोई मछली फँसेगी। जब भी डोरी थोड़ी सी हिलती, वे झट से उसे खींच लेते, लेकिन हर बार निराशा ही हाथ लगती—न मछली, न ही सफलता!
वह दिनभर यूँ ही बैठे रहे, और जब शाम हुई, तब तक एक भी मछली नहीं फँसी। पर उनकी असली मुसीबत तब शुरू हुई जब उन्होंने देखा कि उनका भाई का अनमोल फिशिंग हुक ही गुम हो गया था!
भाई का क्रोध और बढ़ती मुश्किलें
वे घबराकर समुद्र तट पर इधर-उधर खोजने लगे, तभी उनका भाई कुशल मछुआरा, जो शिकार में पूरी तरह असफल रहा था, वहाँ आया। उसका चेहरा गुस्से से तमतमा रहा था।
“भाई, तुम यहाँ क्या कर रहे हो?” उसने तीखी आवाज़ में पूछा।
प्रसन्न शिकारी ने सिर झुकाकर धीरे से कहा,
“भाई, मुझसे बहुत बड़ी भूल हो गई है…”
“क्या किया तुमने?” बड़े भाई ने अधीरता से पूछा।
“तुम्हारा अनमोल फिशिंग हुक खो गया है…”
यह सुनते ही कुशल मछुआरा का चेहरा क्रोध से लाल हो गया।
“मैंने पहले ही कहा था कि हम एक-दूसरे का काम करने के लिए नहीं बने! यह तो होना ही था! अब जब तक तुम मेरा फिशिंग हुक वापस नहीं लाओगे, मैं तुम्हें तुम्हारा धनुष-बाण नहीं लौटाऊँगा। जाओ और मेरा हुक ढूँढकर लाओ!”
एक असंभव खोज
प्रसन्न शिकारी को अपनी गलती का पूरा एहसास था। वे पूरी रात समुद्र किनारे हुक ढूँढते रहे, लेकिन वह कहीं नहीं मिला। हिम्मत हारकर, उन्होंने अपनी तलवार तोड़ दी और पाँच सौ नए हुक बना दिए।
वे बड़े भाई के पास पहुँचे और विनम्रता से कहा,
“भाई, कृपया यह हुक स्वीकार करो और मुझे क्षमा कर दो!”
लेकिन कुशल मछुआरा ने ठुकराते हुए कहा,
“मुझे मेरे असली हुक के अलावा और कुछ नहीं चाहिए!”
बेचारे प्रसन्न शिकारी ने फिर पाँच सौ हुक बनाए, लेकिन फिर भी बड़े भाई का क्रोध शांत नहीं हुआ।
उतरना पड़ा सागर के भीतर
अब प्रसन्न शिकारी पूरी तरह निराश हो चुके थे। वे समुद्र किनारे खड़े सोच रहे थे कि क्या करें, तभी एक बूढ़ा साधु उनके पास आया और बोला,
“तुम्हारा चेहरा इतना उदास क्यों है, राजकुमार?”
उन्होंने पूरी बात बताई। बूढ़े ने मुस्कुराते हुए कहा,
“तुम्हारा हुक यहाँ नहीं मिलेगा। वह या तो किसी मछली ने निगल लिया है या समुद्र की गहराइयों में कहीं चला गया है। यदि तुम्हें अपना हुक वापस चाहिए, तो तुम्हें समुद्र-राजा ‘रयु-जिन’ (Ryn Jin) से मदद मांगनी होगी।”
प्रसन्न शिकारी बोले,
“पर मैं समुद्र के नीचे कैसे जाऊँ?”
बूढ़े साधु ने तुरंत एक जादुई टोकरी बनाई और कहा,
“इसमें बैठ जाओ, यह तुम्हें सागर के नीचे ले जाएगी।”
समुद्र की रहस्यमयी यात्रा
प्रसन्न शिकारी ने साधु का धन्यवाद किया और जादुई टोकरी में बैठकर समुद्र के रहस्यमयी संसार की ओर निकल पड़े
खुशमिजाज शिकारी (हैप्पी हंटर) पूरे वेग से चला जा रहा था, उस जादुई टोकरी पर सवार होकर, जो उसके मित्र ने उसे दी थी। अजीब-सी यह नाव खुद-ब-खुद पानी पर दौड़ रही थी, मानो किसी रहस्यमयी शक्ति से चल रही हो। सफर उतना लंबा नहीं निकला जितना उसने सोचा था। कुछ ही घंटों में, उसकी आँखों के सामने समुद्र-राजा के महल रिन गू (Ryn Gu) के भव्य द्वार और ऊँची-ऊँची छतें नजर आने लगीं।
और यह महल था भी कितना विशाल! अनगिनत झुकी हुई छतें, भव्य मेहराबें और ऊँची पत्थर की दीवारें। जब शिकारी किनारे उतरा, तो उसने अपनी टोकरी एक ओर रखी और महल के बड़े प्रवेशद्वार की ओर बढ़ा। महल के द्वार को सुंदर लाल मूंगा (कोरल) के स्तंभों से सजाया गया था, और उस पर जगमगाते रत्न जड़े हुए थे। उसके ऊपर विशाल कतसुरा (katsura trees) के पेड़ छाया किए हुए थे।
उसने बचपन से ही इस अद्भुत जलमहल की कहानियाँ सुनी थीं, लेकिन आज जो दृश्य उसकी आँखों के सामने था, वह कल्पना से भी परे था।
शिकारी चाहता था कि तुरंत भीतर चला जाए, मगर द्वार बंद था, और आसपास कोई दिखाई नहीं दे रहा था जिससे वह पूछ सके कि उसे कैसे खोला जाए। वह कुछ सोच ही रहा था कि उसकी नज़र द्वार के सामने एक कुएँ पर पड़ी, जिसमें निर्मल मीठा जल भरा था। उसने मन ही मन सोचा— “ज़रूर कोई न कोई यहाँ पानी भरने आएगा।”
यही सोचकर वह कुएँ के ऊपर फैली एक डाल पर चढ़ गया और वहीं बैठकर प्रतीक्षा करने लगा। कुछ ही देर में, विशाल द्वार धीरे-धीरे खुला और वहाँ से दो सुंदर स्त्रियाँ बाहर निकलीं।
शिकारी को यह देखकर आश्चर्य हुआ। वह सोच रहा था कि समुद्र-राजा के इस जल-जगत में केवल भयावह समुद्री जीव होंगे— ड्रैगन, विशाल मछलियाँ, और रहस्यमयी प्राणी। लेकिन यहाँ तो ये दोनों राजकुमारियाँ थीं, और उनका सौंदर्य इतना अनुपम था कि धरती पर भी ऐसा देखना दुर्लभ था।
सोने की बाल्टियाँ लिए दो राजकुमारियाँ कुएँ के किनारे झुकीं। हर दिन की तरह आज भी उन्होंने बाल्टियाँ नीचे डालीं, लेकिन जैसे ही उन्होंने कुएँ के शांत जल में झाँका, एक अनोखी परछाई देखकर चौंक गईं—वहाँ पानी में किसी युवक का प्रतिबिंब झलक रहा था!
पेड़ की छाँव में बैठे उस अनजान नौजवान का चेहरा उन्होंने पहले कभी नहीं देखा था। वे सहम गईं, जल्दी से पीछे हटीं, पर उनकी जिज्ञासा ने जल्द ही डर को मात दे दी। धीरे-धीरे, उन्होंने ऊपर देखा और पाया कि वही युवक पेड़ पर बैठा उनकी ओर देख रहा था—आश्चर्य और प्रशंसा से भरी निगाहों के साथ।
वह युवक कोई साधारण इंसान नहीं था। जब उसने देखा कि राजकुमारियाँ उसे देख चुकी हैं, तो वह फुर्ती से पेड़ से कूदकर नीचे आ गया और शालीनता से बोला,
“मैं एक यात्री हूँ। प्यास से व्याकुल होकर इस कुएँ तक आया, लेकिन यहाँ कोई बाल्टी नहीं मिली जिससे पानी निकाल सकूँ। मैं बेचैन होकर इंतज़ार कर रहा था कि तभी आप दोनों देवियाँ यहाँ आ गईं, मानो मेरी प्रार्थना सुन ली गई हो। क्या आप कृपा करके मुझे थोड़ा जल दे सकती हैं?”
उसकी गरिमा और विनम्रता ने राजकुमारियों का संकोच दूर कर दिया। वे कुएँ के पास गईं, अपनी सोने की बाल्टियों से जल खींचा, और उसे एक रत्नजड़ित प्याले में भरकर दिया।
युवक ने दोनों हाथों से प्याले को माथे तक उठाकर आदरपूर्वक स्वीकार किया और जल्दी से सारा पानी पी गया। फिर, अपनी कमर से बंधी एक सुंदर मोती-जड़ित माला से एक विशेष रत्न (मगटामा – magatama) निकाला, और उसे उसी प्याले में रखकर राजकुमारियों की ओर बढ़ाया।
“यह मेरी कृतज्ञता का एक छोटा-सा प्रतीक है,” उसने विनम्रता से सिर झुकाकर कहा।
राजकुमारियाँ अचरज में पड़ गईं। वे प्याले में झाँककर देखने लगीं—अंदर एक दुर्लभ चमकदार रत्न पड़ा था!
“कोई साधारण व्यक्ति इतने बहुमूल्य रत्न को इस तरह नहीं दे सकता,” बड़ी राजकुमारी बोलीं। “क्या आप हमें अपना नाम बताएँगे?”
युवक मुस्कुराया, “निश्चित रूप से। मैं हूँ होहोदेमी (Hohodemi), जिसे जापान में ‘सुखी शिकारी’ (happy hunter) कहा जाता है।”
राजकुमारियों की आँखें चमक उठीं। “क्या आप सचमुच अमातेरासु (Amaterasu), सूर्य देवी (Sun Goddess)के पौत्र हैं?” बड़ी राजकुमारी ने उत्साह से पूछा। “मैं रिन जिन (Ryn Jin), समुद्र के राजा की पुत्री हूँ। मेरा नाम राजकुमारी तयोतामा (Tayotama) है।”
छोटी बहन ने भी धीरे से सिर झुकाया, “और मैं हूँ राजकुमारी तमायोरी (Tamayori)।”
होहोदेमी ने मुस्कुराकर कहा, “मुझे आपसे मिलकर असीम आनंद हो रहा है।”
इसके बाद जो हुआ, वह किसी चमत्कारी कथा से कम नहीं था। सुखी शिकारी ने बताया कि उसने अपने भाई की प्रिय मछली पकड़ने वाली बंसी समुद्र में खो दी है, और अब उसे वापस पाने की आशा में समुद्री महल में आया है।
“क्या आप मुझे अपने पिता के पास ले जा सकती हैं? क्या वे मेरी मदद करेंगे?” उसने विनम्रता से पूछा।
राजकुमारियाँ मुस्कुराईं।
“हमारे पिता न केवल आपसे मिलकर प्रसन्न होंगे, बल्कि यह जानकर गौरवान्वित भी होंगे कि सूर्य देवी के पौत्र उनके महल तक पधारे हैं!” तयोतामा बोलीं।
इसके बाद, दोनों बहनों ने सुखी शिकारी को अपने पिता, समुद्र के राजा रिन जिन के भव्य महल में ले जाने का निश्चय किया।
समुद्र के राजा का महल और खोई हुई मछली पकड़ने की बंसी
छोटी राजकुमारी ने अपनी बहन को शिकारी की देखभाल करने के लिए छोड़ दिया और तेज़ी से समुद्र के राजा के महल की ओर बढ़ गई। वहाँ पहुँचते ही, वह सीधे अपने पिता के पास गई और उन्हें बताया कि महल के द्वार पर क्या हुआ था। उसने यह भी कहा कि उसकी बहन स्वयं ‘महाराज’ को लेकर आ रही है।
समुद्र के राजा, रायन जिन (Ryn Jin), यह सुनकर हैरान रह गए। यह कोई साधारण घटना नहीं थी—कई सौ वर्षों में शायद एक बार ही ऐसा होता था कि कोई मनुष्य उनके महल तक पहुँचता। उन्होंने तुरंत अपने दरबारियों, सेवकों और समुद्र की विशेष मछलियों को बुलाया और गंभीरता से घोषणा की—
“सूर्य देवी अमतेरासु के पौत्र, होहोदेमी (खुशहाल शिकारी) हमारे महल में पधार रहे हैं। हमें उनका आदरपूर्वक स्वागत करना चाहिए।”
महल के सभी सदस्य पूरे सम्मान के साथ खुशहाल शिकारी का स्वागत करने के लिए प्रवेश द्वार पर एकत्र हो गए।
समुद्र के राजा रायन जिन ने अपने विशेष राजकीय वस्त्र पहने और महल के द्वार पर आ गए। कुछ ही क्षणों में राजकुमारी तायोतामा शिकारी के साथ पहुँची। जैसे ही वे महल में आए, समुद्र के राजा और उनकी रानी ने ज़मीन पर झुककर उनका अभिनंदन किया और कहा — “आपके आगमन से हमारा महल धन्य हो गया! कृपया हमें अनुग्रहित करें।”
खुशहाल शिकारी ने भी आदरपूर्वक झुककर कहा — “क्या आप ही समुद्र के राजा रायन जिन हैं, जिनके बारे में मैं सुनता आया हूँ? आपके आतिथ्य से मैं अभिभूत हूँ।”
राजा रायन जिन ने उत्तर दिया — “यह मेरा सौभाग्य है! हमारा महल भले ही साधारण हो, लेकिन यदि आप कुछ समय यहाँ बिताएँगे, तो यह हमारे लिए अत्यंत सम्मान की बात होगी।”
महल में आनंद और उल्लास का वातावरण था। राजा और शिकारी के बीच लंबे समय तक बातें होती रहीं। फिर, राजा ने तालियाँ बजाईं, और कई रंग-बिरंगी मछलियाँ राजकीय परिधान में भोज परोसने के लिए उपस्थित हो गईं।
समुद्र का यह भोज किसी सपने जैसा था—हर प्रकार की समुद्री व्यंजनाएँ, अनोखे जीव, और जलपरियों का संगीत!
राजा की राजकुमारियाँ कोटो [जापानी वीणा – KOTO (the Japanese harp)] बजाने लगीं, गीत गाने लगीं, और नृत्य प्रस्तुत करने लगीं। शिकारी इन मनोरम दृश्यों में इतना रम गए कि वे भूल ही गए कि वे यहाँ आए क्यों थे!
खोई हुई मछली पकड़ने की बंसी का रहस्य
कुछ समय बाद, शिकारी को अपनी खोज याद आई और उन्होंने राजा से कहा — “राजन, मैं यहाँ अपने भाई की खोई हुई मछली पकड़ने की बंसी को ढूँढ़ने आया हूँ। कृपया अपने साम्राज्य में पता लगाएँ कि क्या किसी को इसका कोई सुराग मिला है?”
राजा ने तुरंत आदेश दिया और समुद्र की सभी प्रमुख मछलियों को बुलवाया—ऑक्टोपस, झींगा, समुद्री ईल, लाल ब्रीम (Tai मछली) और कई अन्य। सभी मछलियाँ राजा के सामने बैठ गईं और ध्यान से उनकी बात सुनी।
जब राजा ने शिकारी की समस्या बताई, तो सारी मछलियाँ चुपचाप एक-दूसरे की ओर देखने लगीं। कुछ क्षणों बाद, कटलफिश (cuttlefish) आगे आई और बोली — “महाराज, मुझे लगता है कि यह लाल ब्रीम (Tai) की शरारत हो सकती है!”
राजा ने पूछा, “तुम ऐसा क्यों सोचते हो?”
कटलफिश ने उत्तर दिया—
“कल शाम से ही Tai मछली कुछ खा नहीं रही है, और ऐसा लग रहा है कि उसके गले में कुछ अटका हुआ है। हो सकता है कि बंसी उसी के गले में हो।”
चोरी का भेद खुला
राजा ने तुरंत आदेश दिया कि Tai मछली को बुलाया जाए। जब वह आई, तो उसका चेहरा उतरा हुआ था। राजा ने ग़ुस्से में पूछा— “तुमने हमारे मेहमान की बंसी चुरा ली है, है ना?”
Tai ने सिर झुका लिया और दर्दभरी आवाज़ में कहा—
“महाराज, मैंने जानबूझकर कुछ नहीं किया! पानी में एक चारा देखकर मैंने झपट लिया, लेकिन तभी बंसी मेरे गले में फँस गई। मैं इसे निकालने की बहुत कोशिश कर रहा था, पर असफल रहा। अब मैं न कुछ खा पा रहा हूँ, न ठीक से साँस ले पा रहा हूँ। कृपया मुझे क्षमा करें!”
कटलफिश आगे आई और बोली — “महाराज, मैं इसे तुरंत बाहर निकाल सकती हूँ।”
Tai ने विनती की, “कृपया जल्दी कीजिए, मैं बहुत कष्ट में हूँ!”
कटलफिश ने Tai का मुँह खोला और अपनी लंबी भुजाओं से बंसी को धीरे-धीरे बाहर निकाला।
शिकारी को खोई हुई बंसी मिल गई!
राजा रायन जिन ने बंसी उठाई और सम्मानपूर्वक शिकारी को सौंप दी। शिकारी अत्यंत प्रसन्न हुए और राजा को बार-बार धन्यवाद दिया।
क्या Tai को दंड मिलेगा?
राजा Tai को दंडित करना चाहते थे, लेकिन शिकारी ने उन्हें रोकते हुए कहा—
“राजन, यह बेचारी Tai पहले ही बहुत कष्ट भोग चुकी है। उसने जानबूझकर ऐसा नहीं किया था। असल में, दोष मेरा है—अगर मैं मछली पकड़ने में दक्ष होता, तो यह समस्या उत्पन्न ही न होती। कृपया इसे क्षमा करें।”
शिकारी की उदारता देखकर राजा प्रभावित हुए और उन्होंने Tai को माफ़ कर दिया।
Tai इतनी खुश हुई कि उसने अपनी चमकीली लाल पूँछ हिलाकर सबका धन्यवाद किया, और महल में उपस्थित सभी मछलियाँ खुश होकर राजा और शिकारी की प्रशंसा करने लगीं।
अब जब बहादुर शिकारी को वह जादुई कांटा मिल गया था, तो उसके पास रिन गू (Ryn Gu) में रुकने का कोई कारण नहीं था। उसका दिल अपने राज्य लौटने और अपने क्रोधित भाई, कुशल मछुआरे, से सुलह करने के लिए बेचैन था। लेकिन समुद्र का राजा, जो उसे पुत्र के समान प्यार करने लगा था, उसे इतनी जल्दी छोड़ने न देने की विनती करने लगा।
राजा ने अपने महल को उसका स्थायी घर बनाने का अनुरोध किया। जब बहादुर शिकारी असमंजस में था, तभी दो सुंदर राजकुमारियाँ, तायोतामा और तमायोरी, मीठी मुस्कान और मधुर वाणी से अपने पिता की बात का समर्थन करने लगीं। वे इतनी विनम्रता और स्नेह से उसे रोकने लगीं कि वह “नहीं” कह ही नहीं पाया और कुछ और समय के लिए वहीं रुक गया।
समुद्र लोक और धरती लोक के बीच समय का कोई अंतर नहीं था। इस जादुई राज्य में उसे तीन वर्ष ऐसे बीत गए जैसे वे पलों की तरह गुजर गए हों। जब मन आनंद से भर जाता है, तो समय पंख लगाकर उड़ जाता है।
परंतु जैसे-जैसे दिन बीतते गए, बहादुर शिकारी को अपने घर, अपने देश और अपने भाई की याद सताने लगी। यह सोचकर कि इन वर्षों में उसके राज्य का क्या हुआ होगा, उसका हृदय व्याकुल हो उठा।
राजा से विदाई और अमूल्य उपहार
अंततः उसने समुद्र के राजा के पास जाकर कहा,
“मुझे यहाँ अपार सुख और प्रेम मिला है। मैं आपके असीम स्नेह और आतिथ्य के लिए हृदय से आभारी हूँ। लेकिन मेरा राज्य मुझे पुकार रहा है। मुझे अपने भाई को उसका खोया हुआ कांटा लौटाना है और उससे क्षमा माँगनी है। मैं अत्यंत दुखी हूँ कि आपको छोड़कर जाना पड़ रहा है, पर अब विलंब करना उचित नहीं। कृपया मुझे जाने की आज्ञा दें।”
राजा रिन जिन यह सुनकर दुखी हो गए। उनकी आँखों में आँसू छलक आए। उन्होंने कहा,
“प्रिय मित्र, तुम्हारे बिना यह महल सूना लगने लगेगा। तुम हमारे आदरणीय अतिथि थे और हमने तुम्हारा हर सुख-सुविधा का ध्यान रखा। परंतु तुम्हारा स्थान वास्तव में यहाँ नहीं, बल्कि तुम्हारे राज्य में है। मैं आशा करता हूँ कि तुम हमें भूलोगे नहीं। यह मित्रता जो समुद्र और धरती के बीच पनपी है, यह सदा बनी रहे।”
इसके बाद उन्होंने अपनी दोनों बेटियों से दो अमूल्य रत्न लाने के लिए कहा। राजकुमारियाँ शीघ्रता से महल के भीतर गईं और अपने हाथों में दो अद्भुत, चमकते हुए मणि लेकर लौटीं। वे इतनी तेजस्वी थीं कि उनके प्रकाश से पूरा कक्ष प्रकाशित हो गया।
राजा ने उन रत्नों को शिकारी को देते हुए कहा,
“ये अनमोल रत्न हमारे पूर्वजों की धरोहर हैं। इन्हें तुम्हें सौंपकर मैं अपने प्रेम और आशीर्वाद की निशानी दे रहा हूँ। ये रत्न जादुई शक्तियों से भरपूर हैं—नानजियु (nanjiu) और कानजियु (kanjiu)।”
समुद्र की शक्ति और जादुई रत्न
शिकारी ने आदरपूर्वक नतमस्तक होकर पूछा,
“ये रत्न किस शक्ति से युक्त हैं, और मैं इनका उपयोग कैसे करूँ?”
राजा ने उत्तर दिया,
“नानजियु, जिसे ज्वार का रत्न कहा जाता है, इसकी शक्ति से तुम समुद्र को बुला सकते हो और इसे धरती पर फैला सकते हो। वहीं, कानजियु, जिसे भाटे का रत्न कहा जाता है, इसकी शक्ति से समुद्र को पीछे हटा सकते हो और पानी को नियंत्रित कर सकते हो।”
फिर राजा ने शिकारी को इन रत्नों का उपयोग करना सिखाया। शिकारी प्रसन्न हुआ, क्योंकि अब वह अपने राज्य लौटकर इनका प्रयोग संकट के समय कर सकता था।
अलविदा समुद्र लोक, वापसी अपने राज्य में
आखिरकार विदाई का समय आ गया। राजा, राजकुमारियाँ और महल के सभी निवासी उसे विदा करने आए। शिकारी जब समुद्र के किनारे पहुँचा, तो वहाँ उसे वही अजीब-सा टोकरीनुमा वाहन नहीं मिला जिससे वह आया था।
इसके स्थान पर वहाँ एक विशाल मगरमच्छ खड़ा था, जिसकी लंबाई आठ हाथों से भी अधिक थी। यह राजा ने विशेष रूप से शिकारी को उसके देश पहुँचाने के लिए भेजा था। यह किसी भी जहाज से तेज गति से यात्रा कर सकता था।
यही कारण था कि शिकारी मगरमच्छ की पीठ पर बैठकर अपने राज्य लौट आया।
भाई से पुनर्मिलन और ईर्ष्या की आग
अपने राज्य लौटकर सबसे पहले उसने अपने भाई, कुशल मछुआरे से भेंट की। उसने उसे वह कांटा लौटा दिया, जिसके खोने से उनका विवाद शुरू हुआ था। उसने अपने भाई से क्षमा माँगी और अपने रोमांचक समुद्री सफर की पूरी कहानी सुनाई।
परंतु मछुआरे के मन में पश्चाताप नहीं था। उसने अपने भाई के लौटने की कभी कल्पना भी नहीं की थी। जब शिकारी चला गया था, तब उसने स्वयं को राजा घोषित कर लिया था और पूरे राज्य पर अपना अधिकार जमा लिया था।
अब, जब शिकारी वापस आ गया था, तो उसका हृदय ईर्ष्या और क्रोध से भर गया। उसने बाहर से तो क्षमा करने का दिखावा किया, लेकिन भीतर ही भीतर वह अपने भाई को मारने की योजना बनाने लगा।
शिकारी की बुद्धिमानी और न्याय की विजय
एक दिन, जब शिकारी खेतों में घूम रहा था, मछुआरा उसके पीछे-पीछे एक कटार लिए आ गया। शिकारी समझ गया कि भाई की नीयत अच्छी नहीं है। उसने तुरंत अपनी पोशाक के अंदर से ज्वार का रत्न (नानजियु) निकाला और माथे से लगाते ही समुद्र की ऊँची लहरें उठने लगीं।
देखते ही देखते खेत और गाँव पानी में डूब गए। मछुआरा इस अचानक आई बाढ़ से भयभीत हो गया और डूबने लगा।
उसने चीखकर अपने भाई से प्रार्थना की,
“भैया! मुझे बचा लो! मैं तुम्हें फिर कभी कष्ट नहीं दूँगा!”
शिकारी का दिल कोमल था। उसने तुरंत भाटे का रत्न (कानजियु) उठाया और उसे ऊँचा करते ही समुद्र का जल धीरे-धीरे पीछे हटने लगा।
शांति की स्थापना
मछुआरा इस घटना से बहुत डर गया और उसने अपने छोटे भाई के सामने सिर झुका दिया। उसने न केवल अपनी गलती स्वीकार की, बल्कि यह भी प्रण लिया कि वह भविष्य में कभी अन्याय नहीं करेगा।
“अब मैं तुम्हें ही इस राज्य का सच्चा राजा मानूँगा और स्वयं को तुम्हारा सेवक मानूँगा!”
शिकारी ने कहा,
“यदि तुम अपने बुरे विचारों को सदा के लिए समुद्र में फेंक दो, तो मैं तुम्हें क्षमा करता हूँ!”
मछुआरे ने शपथ ली और दोनों भाइयों में मेल हो गया।
इसके बाद, शिकारी ने अपने राज्य पर शांति और न्यायपूर्वक राज किया। समुद्र के जादुई रत्न उसके सबसे अनमोल खजाने बने रहे, जिनकी शक्ति ने उसे कठिन समय में सुरक्षित रखा।
और इस प्रकार, एक बुद्धिमान राजा के रूप में, उसने अपने राज्य में वर्षों तक शांति और समृद्धि बनाए रखी।
अंत भला, तो सब भला!
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