भगवान बुद्ध की सीख (The Teachings of Lord Buddha)

(यह कहानी हमें जीवन और मृत्यु के शाश्वत सत्य को समझाने वाली एक प्राचीन बौद्ध कथा पर आधारित है, जो हमें सिखाती है कि मोह से मुक्त होकर ही सच्ची शांति प्राप्त की जा सकती है।)

बहुत समय पहले, एक छोटे से नगर में गौतमीशा नाम की एक महिला रहती थी। विवाह के बाद कुछ वर्षों में ही उसने एक सुंदर और प्यारा पुत्र जन्मा। उसकी दुनिया अब अपने पुत्र के इर्द-गिर्द ही घूमती थी। लेकिन दुर्भाग्यवश, एक दिन अचानक ही उसका बेटा बीमार पड़ गया और कुछ ही दिनों में दुनिया छोड़कर चला गया।

गौतमीशा का हृदय टूट गया। उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि उसका बेटा अब इस दुनिया में नहीं है। उसका मन यह स्वीकारने को तैयार नहीं था कि उसकी गोद हमेशा के लिए सूनी हो गई है। वह अपने मृत पुत्र को गोद में लिए घर-घर जाकर लोगों से गुहार लगाने लगी, “कृपया कोई मेरे बेटे को फिर से जीवित कर दे! मुझे मेरा बच्चा वापस चाहिए!”

आसरा और उम्मीद की तलाश

नगर के लोग गौतमीशा की पीड़ा देखकर दुखी थे, परंतु कोई उसकी मदद नहीं कर सकता था। सबने उसे समझाने की कोशिश की कि मृत्यु का कोई उपाय नहीं होता, लेकिन उसके कानों में किसी की भी बात नहीं पड़ रही थी। उसकी आँखों में सिर्फ अपने बेटे की छवि थी।

इसी तरह भटकते हुए गौतमीशा एक भिक्षु के पास पहुँची। वह भिक्षु अत्यंत करुणामयी थे और उन्होंने उसकी वेदना को समझा। उन्होंने गौतमीशा से कहा, “यदि कोई तुम्हारी सहायता कर सकता है, तो वे केवल भगवान बुद्ध हैं। वे अवश्य तुम्हारी पीड़ा का हल निकाल सकते हैं।”

यह सुनते ही गौतमीशा की आँखों में आशा की एक किरण चमकी और वह तुरंत भगवान बुद्ध के पास पहुँची।

बुद्ध की शर्त

गौतमीशा ने रोते हुए बुद्ध से प्रार्थना की, “हे प्रभु! कृपया मेरे बेटे को वापस जीवित कर दीजिए। मैं उसके बिना नहीं रह सकती।”

बुद्ध ने शांत स्वर में कहा, “ठीक है, मैं तुम्हारी इच्छा पूरी कर सकता हूँ। लेकिन इसके लिए तुम्हें एक शर्त पूरी करनी होगी।”

गौतमीशा बोली, “शर्त? हाँ, मैं कुछ भी करने को तैयार हूँ!”

बुद्ध ने समझाते हुए कहा, “तुम्हें नगर से कुछ सरसों के बीज लाने होंगे, लेकिन वे ऐसे घर से होने चाहिए, जहाँ आज तक किसी की मृत्यु न हुई हो।”

गौतमीशा को लगा कि यह कार्य सरल होगा। वह तुरंत नगर की ओर चल पड़ी।

नए सत्य की खोज

गौतमीशा नगर के हर घर के द्वार पर दस्तक देने लगी। हर जगह जाकर वह एक ही प्रश्न पूछती, “क्या इस घर में किसी की मृत्यु नहीं हुई है? यदि ऐसा कोई घर है, तो कृपया मुझे कुछ सरसों के बीज दे दें।”

हर घर से उसे एक ही उत्तर मिलता, “अरे बहन! ऐसा कोई घर कहाँ मिलेगा? यहाँ तो हर किसी ने किसी न किसी प्रियजन को खोया है।”

कहीं किसी का पिता चला गया था, कहीं किसी की माता, तो कहीं किसी ने अपने भाई या बहन को खो दिया था। हर घर ने मृत्यु का सामना किया था।

धीरे-धीरे गौतमीशा को एक बड़ा सत्य समझ में आने लगा। वह जितने अधिक घरों में जाती, उतना ही उसे यह एहसास होता कि मृत्यु जीवन का एक अटल सत्य है। कोई भी इससे बच नहीं सकता, चाहे वह राजा हो या रंक।

सत्य का बोध

कई घरों के चक्कर लगाने के बाद, गौतमीशा के मन में पहले जैसी बेचैनी नहीं थी। अब उसे समझ में आ चुका था कि मृत्यु अपरिहार्य है। जितना भी कोई रो ले, प्रार्थना कर ले, यह नियम किसी के लिए नहीं बदल सकता।

थके हुए कदमों से वह वापस भगवान बुद्ध के पास पहुँची और बोली, “हे प्रभु! मैं अब समझ गई हूँ कि यह संसार नश्वर है। कोई भी यहाँ सदा नहीं रह सकता। अब मेरी कोई इच्छा नहीं बची।”

बुद्ध मुस्कुराए और बोले, “अब तुम सत्य को जान चुकी हो। जीवन और मृत्यु एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। जब तक हम जन्म को सत्य मानते हैं, मृत्यु को भी स्वीकारना होगा। यही संसार का नियम है।”

गौतमीशा ने भगवान बुद्ध के चरणों में सिर झुका दिया और कहा, “हे प्रभु! अब मुझे कोई मोह नहीं है। कृपया मुझे अपने शिष्य के रूप में स्वीकार करें।”

उस दिन से, गौतमीशा ने सांसारिक मोह छोड़कर सत्य और ज्ञान के मार्ग पर चलना शुरू कर दिया।

कहानी से सीख:

  • मृत्यु जीवन का एक अनिवार्य सत्य है। कोई भी इससे बच नहीं सकता।
  • हमारा दुख और पीड़ा, मोह और अज्ञान से उत्पन्न होते हैं। जब हम सच्चाई को स्वीकार कर लेते हैं, तब मन को शांति मिलती है।
  • भगवान बुद्ध का ज्ञान हमें सिखाता है कि जीवन में सुख-दुख को समान रूप से स्वीकार करना चाहिए।

यह कहानी जीवन के सबसे गहरे सत्य को दर्शाती है और हमें सिखाती है कि मृत्यु का शोक करने की बजाय हमें अपने जीवन को सार्थक बनाना चाहिए।

Disclaimer:

This story has been adapted and rewritten based on an Indian folktale. The names, characters, and events have been modified to create a unique and original retelling while preserving the essence of the moral lesson. This version has been independently crafted to ensure originality and does not intend to infringe upon any copyrights or intellectual property rights of the original publication. Any resemblance to real persons, places, or events is purely coincidental.

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