स्त्री और पुरुष जीवन रूपी रथ के दो पहिए हैं। यदि एक भी कमजोर पड़े, तो जीवन की गति रुक जाती है। भारतीय संस्कृति में नारी को सदैव मातृशक्ति, प्रेरणा और त्याग की मूर्ति के रूप में सम्मानित किया गया है। आज का युग विज्ञान और तकनीक का है, फिर भी भारतीय नारी अपनी परंपराओं, मूल्यों और संस्कृति से जुड़ी हुई है। वह समय के साथ बदल भी रही है और अपने भीतर के आदर्शों को भी संजोए हुए है।
भारतीय नारी की पारंपरिक पहचान उसकी शालीनता, सादगी और सहनशीलता रही है। वह अपने त्याग और तपस्या से पूरे परिवार को जोड़ने वाली धुरी बनती है। “जहाँ नारी पूजी जाती है, वहाँ देवता निवास करते हैं” — यह कथन केवल ग्रंथों में नहीं, भारतीय जीवन में भी देखा जाता है। प्राचीन भारत की स्त्रियाँ जैसे – गार्गी, अपाला और मैत्रेयी न केवल विदुषी थीं बल्कि समाज निर्माण में सक्रिय भागीदार भी। उनका जीवन इस बात का प्रमाण है कि नारी सृजन की शक्ति है, केवल शोभा का पात्र नहीं।
भारतीय समाज में नारी सशक्तिकरण की दिशा में अनेक समाज सुधारकों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। राजा राममोहन राय ने सती प्रथा जैसी कुरीति के विरुद्ध आवाज़ उठाकर भारतीय नारी को नया जीवन दिया। महात्मा ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले ने बालिका शिक्षा की नींव रखी और विधवा पुनर्विवाह का समर्थन किया। डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने संविधान में नारी को समान अधिकार दिलाने और दलित महिलाओं के हक की पैरवी की। ईश्वरचंद्र विद्यासागर, पंडिता रमाबाई, और सरोजिनी नायडू जैसी विभूतियों ने भी नारी जागरण में अपना अहम योगदान दिया। इन महापुरुषों और महिलाओं की दूरदर्शिता के कारण ही आज भारतीय नारी शिक्षा, स्वतंत्रता और सामाजिक न्याय का अधिकार प्राप्त कर सकी है।
नारी केवल घर की सजावट नहीं, वह घर की आत्मा है। भारतीय नारी ने गृहस्थ जीवन में धैर्य, संयम और समर्पण के अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत किए हैं। माँ, बहन, पत्नी और बेटी के रूप में वह परिवार को आत्मबल और संबल देती है। समय आने पर वही नारी झांसी की रानी बनकर तलवार भी उठा सकती है और कल्पना चावला बनकर अंतरिक्ष भी छू सकती है। उसकी यह शक्ति “नर से नारी नहीं, नारी से नर” जैसे वाक्य को सार्थक करती है।
आज की नारी पहले से अधिक शिक्षित, जागरूक और आत्मनिर्भर है। उसने राजनीति, शिक्षा, विज्ञान, खेल, उद्योग, रक्षा और कला जैसे अनेक क्षेत्रों में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है। फिर भी उसे सामाजिक दायित्वों के साथ लैंगिक भेदभाव, कार्यस्थल की असमानता और मानसिक उत्पीड़न जैसी समस्याओं से जूझना पड़ता है। “नारी को अबला मत समझो, वह सबला भी है और सक्षम भी” — यह आज की सच्चाई है।
आज भारतीय और भारतीय मूल की महिलाएँ विश्वपटल पर अपनी पहचान बना रही हैं। किरण बेदी, जो भारत की पहली महिला आईपीएस अधिकारी बनीं, ने पुलिस सेवा में नया इतिहास रचा। कल्पना चावला और सुनीता विलियम्स ने अंतरिक्ष में भारत का गौरव बढ़ाया। पी.वी. सिंधु, सायना नेहवाल और मीराबाई चानू जैसी खिलाड़ियों ने अंतरराष्ट्रीय खेल जगत में देश का नाम रोशन किया। नीति आयोग की पूर्व सीईओ अर्चना अरोड़ा और पेप्सिको की पूर्व सीईओ इंदिरा नूयी ने कॉर्पोरेट जगत में मिसाल पेश की। ऐसे अनगिनत नाम आज की नारी की शक्ति, साहस और सफलता का प्रमाण हैं।
आज का युग डिजिटल और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का है, जिसमें नारी भी तकनीक के साथ कदम मिलाकर चल रही है। वह ऑनलाइन शिक्षा ले रही है, स्टार्टअप चला रही है, सोशल मीडिया पर विचार प्रकट कर रही है और घर-बाहर दोनों मोर्चों पर सफलतापूर्वक कार्य कर रही है। सरकार की ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’, ‘सुकन्या समृद्धि योजना’ जैसी पहलें उसे आर्थिक और सामाजिक रूप से सशक्त बना रही हैं। आज की नारी “संवेदना और संकल्प का सुंदर संगम” बन चुकी है।
आधुनिक भारतीय नारी वह दीपक है जो स्वयं जलकर दूसरों को रोशनी देती है। वह आधुनिकता की चकाचौंध में अपनी संस्कृति की मिट्टी की सौंधी गंध नहीं भूलती। उसमें संयम है, तो संघर्ष भी; प्रेम है, तो प्रतिकार भी। यही संतुलन उसे “गृहलक्ष्मी से राष्ट्रशक्ति” बनने की दिशा में ले जाता है। “जो बीत गया सो बात गई” — यह सोचकर वह आगे बढ़ रही है, पर अपनी जड़ों को नहीं छोड़ती।
भारतीय नारी आज भी परिवार, समाज और राष्ट्र की रीढ़ बनी हुई है। उसकी सहनशीलता, संस्कार और आत्मबल भारत की सांस्कृतिक विरासत को समृद्ध कर रहे हैं। आवश्यकता है कि हम उसके त्याग, बलिदान और योगदान को पहचानें, सम्मान दें और उसे स्वतंत्रता के साथ सुरक्षा भी प्रदान करें। “नारी सशक्त होगी, तभी राष्ट्र समृद्ध होगा।”
अस्वीकरण (Disclaimer):
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