भारत आज जिस तेज़ी से आर्थिक, तकनीकी और वैश्विक मंच पर आगे बढ़ रहा है, उसी गति से एक छुपी हुई सामाजिक चुनौती उसकी प्रगति की राह में रोड़ा बनी हुई है — बेरोज़गारी। यह समस्या मात्र एक आर्थिक कठिनाई नहीं, बल्कि समाज की जड़ों में घर कर चुकी पीड़ा है। गाँव से लेकर महानगरों तक, युवा वर्ग के चेहरों पर छुपी निराशा और आँखों में धुँधली होती उम्मीदें इस चुनौती की गवाही देती हैं। “नौकरी की आस में उम्र निकल गई” — यह कथन आज कितनों का यथार्थ बन चुका है। जिस देश की 65% जनसंख्या युवा है, वहाँ यदि उन्हें रोजगार न मिले तो वह जनसंख्या वरदान नहीं, बोझ बन जाती है।
आज भारत में बेरोज़गारी के विभिन्न स्वरूप देखने को मिलते हैं — शिक्षित बेरोज़गारी, अल्पकालिक बेरोज़गारी, ग्रामीण बेरोज़गारी, छिपी हुई बेरोज़गारी आदि। कई युवा डिग्रियाँ लेकर घर बैठने को मजबूर हैं, तो कई लोग ऐसे भी हैं जो अपनी योग्यताओं से कम स्तर की नौकरियों में काम कर रहे हैं। तकनीकी रूप से प्रशिक्षित युवाओं की संख्या में वृद्धि हुई है, लेकिन उद्योगों की मांग के अनुरूप कुशल मानव संसाधन की कमी आज भी बनी हुई है। इस प्रकार भारत के ‘डेमोग्राफिक डिविडेंड’ की शक्ति बेरोज़गारी के कारण दुर्बल पड़ रही है।
शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में बेरोज़गारी की स्थिति चिंताजनक है। ग्रामीण क्षेत्र में कृषि पर निर्भरता अधिक है, परंतु भूमिहीनता और पारंपरिक खेती के सीमित साधनों के कारण रोजगार के अवसर बहुत कम हैं। शहरी क्षेत्रों में पढ़े-लिखे युवाओं की भीड़ है, परन्तु अवसर सीमित। शिक्षा और उद्योगों के बीच की खाई ने नौकरी की तलाश को लम्बा संघर्ष बना दिया है। यही कारण है कि कई युवक-युवतियाँ वर्षों तक प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करते रहते हैं, फिर भी सफलता कुछ प्रतिशत को ही मिलती है।
जनसंख्या में तीव्र वृद्धि, शिक्षा प्रणाली की कमियाँ, तकनीकी प्रशिक्षण की कमी, और स्वरोज़गार के लिए पर्याप्त संसाधनों का अभाव — ये बेरोज़गारी के मूल कारणों में शामिल हैं। ग्रामीण उद्योगों और कुटीर उद्योगों को वह प्रोत्साहन नहीं मिला जिसकी आवश्यकता थी। कृषि के अतिरिक्त कोई बड़ा रोज़गार स्रोत नहीं है और आधुनिक उद्योग सीमित हैं। इसके अतिरिक्त, हमारे पड़ोसी देशों से अवैध रूप से आनेवाले लोगों का बोझ भी भारत की रोज़गार स्थिति को जटिल बना देता है।
बेरोज़गारी केवल आर्थिक संकट नहीं, सामाजिक और मानसिक स्तर पर भी गहरा असर छोड़ती है। युवा वर्ग में अवसाद, असुरक्षा और हताशा की भावना प्रबल हो जाती है। इसके परिणामस्वरूप अपराधों में वृद्धि, घरेलू कलह, मानसिक अस्वस्थता और आत्महत्याओं की घटनाएँ सामने आती हैं। एक पढ़ा-लिखा बेरोज़गार युवा स्वयं को असफल महसूस करता है। “बेरोज़गार मनुष्य बिना पतवार की नाव की तरह है” — जो दिशा हीन होकर समाज में बहक सकता है।
वर्तमान समय में यह स्पष्ट हो गया है कि शिक्षा को केवल डिग्री आधारित नहीं, रोजगारपरक बनाना होगा। तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा को विद्यालय और महाविद्यालय स्तर पर अनिवार्य किया जाना चाहिए। प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY), स्टार्टअप इंडिया, अटल नवाचार मिशन जैसे प्रयासों को गाँव-गाँव तक पहुँचाना आवश्यक है। साथ ही, नए उद्योगों की स्थापना, MSMEs को आर्थिक सहायता और स्वरोज़गार को बढ़ावा देना — ये उपाय बेरोज़गारी को जड़ से कम कर सकते हैं।
आज के तकनीकी युग में डिजिटल इंडिया, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, साइबर सुरक्षा, ब्लॉकचेन जैसी नई तकनीकों के क्षेत्र में हज़ारों रोजगार सृजित हो रहे हैं। लेकिन समस्या यह है कि अधिकांश युवा इन क्षेत्रों के लिए प्रशिक्षित नहीं हैं। इसे सुधारने के लिए सरकार को व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्रों की संख्या और गुणवत्ता में भारी सुधार लाना होगा। इससे हम न केवल देश के युवाओं को सक्षम बना सकेंगे, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी प्रतिस्पर्धा में टिक सकेंगे।
साथ ही, कृषि क्षेत्र में नवाचार और सहायक उद्योगों का विकास भी रोजगार सृजन में सहायक हो सकता है। मधुमक्खी पालन, रेशम कीट पालन, मुर्गी पालन, मत्स्य पालन, जैविक खेती आदि क्षेत्रों में यदि वैज्ञानिक विधियों से प्रशिक्षण दिया जाए और बाज़ार उपलब्ध कराए जाएं, तो गाँवों में भी रोजगार के साधन पैदा किए जा सकते हैं। इससे ग्रामीण पलायन भी रुकेगा और शहरी बेरोज़गारी पर दबाव कम होगा।
नवयुग में स्वरोज़गार की ओर युवाओं का रुझान भी बढ़ रहा है। ऑनलाइन व्यापार, सोशल मीडिया मार्केटिंग, कंटेंट क्रिएशन, ग्राफिक डिजाइनिंग जैसे क्षेत्रों ने नया मार्ग दिखाया है। सरकार और निजी क्षेत्र को मिलकर इन नवाचारों को समर्थन देना चाहिए। साथ ही, जब तक शिक्षित बेरोज़गारों को नौकरी नहीं मिलती, तब तक उन्हें सरकार द्वारा बेरोज़गारी भत्ता देना सामाजिक न्याय की ओर एक सकारात्मक कदम हो सकता है।
अंततः, यह कहना गलत नहीं होगा कि बेरोज़गारी एक गंभीर सामाजिक और राष्ट्रीय चुनौती है, लेकिन यह समाधानहीन नहीं है। “जहाँ चाह वहाँ राह” इस कहावत को चरितार्थ करते हुए हमें शिक्षा, नीति और अवसरों का संगम बनाना होगा। भारत की युवा शक्ति को ‘बोझ’ नहीं, ‘बोन्साई’ की तरह संवारना होगा। यदि हम आज ठोस कदम उठाएँ, तो कल भारत न केवल आत्मनिर्भर बनेगा, बल्कि रोजगार देने वाला देश भी बन सकता है। “बेरोज़गारी मिटेगी तभी, जब नीति, नीयत और नवाचार एक साथ चलें।”
अस्वीकरण (Disclaimer):
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