मूर्ख राजा और तीन चतुर मित्र (The Foolish King and the Three Clever Friends)

(यह कहानी एक प्राचीन लोककथा से प्रेरित है, जो हमें सिखाती है कि चतुराई और बुद्धिमानी से किसी भी कठिनाई से निकला जा सकता है, जबकि अज्ञानता और अहंकार का अंत निश्चित होता है।)

बहुत समय पहले, एक दूरस्थ पहाड़ी राज्य में राजा मूर्खसेन का शासन था। वह स्वभाव से अत्यंत सनकी और अज्ञानी था। उसके दरबार में भी वैसे ही मूर्ख मंत्री थे, जो उसे अजीबोगरीब सलाहें दिया करते थे। राज्य के सभी नियम राजा की सनक के अनुसार चलते थे। उनमें से एक सबसे विचित्र कानून यह था कि हर वस्तु की कीमत केवल एक कौड़ी थी—चाहे वह सोना हो या मिट्टी! यह सुनकर बाहरी लोग आश्चर्यचकित होते, लेकिन प्रजा के लिए यह एक बड़ी मुसीबत थी।

राज्य का विचित्र कानून

राजा मूर्खसेन के राज्य में कोई भी वस्तु बहुत सस्ती थी, लेकिन न्याय, समझदारी और शांति की भारी कमी थी। जनता उसके सनकी फैसलों से परेशान थी, परंतु डर के कारण कोई कुछ कहने की हिम्मत नहीं करता था। राजा के मूर्ख मंत्रियों को अपनी मनमानी करने की पूरी छूट थी, और वे आम जनता पर अत्याचार करते रहते थे।

तीन मित्रों का आगमन

एक दिन तीन यात्री इस राज्य में आए। उन्होंने बाजार में घूमते हुए वहाँ की विचित्र व्यवस्थाएँ देखीं। पहला मित्र बोला, “यहाँ का माहौल बहुत अजीब है। इतने कम दाम में चीज़ें मिल रही हैं, लेकिन मुझे यह राज्य सुरक्षित नहीं लगता।”

दूसरे मित्र ने भी सहमति जताते हुए कहा, “सस्ती चीज़ों से पेट तो भर सकता है, लेकिन यदि यहाँ के राजा के नियम इतने अजीब हैं, तो कभी भी कोई अनहोनी हो सकती है।”

परंतु तीसरा मित्र बहुत लालची था। उसने उत्साह से कहा, “मित्रों, मुझे तो यह राज्य बहुत बढ़िया लगा! यहाँ कम पैसे में ही बढ़िया जीवन जिया जा सकता है। मैं यहीं बसने का निश्चय करता हूँ।”

पहले दोनों मित्रों ने उसे बहुत समझाने की कोशिश की, लेकिन वह टस से मस नहीं हुआ। अंत में वे बोले, “अगर तुम्हें यहाँ रहना ही है तो रहो, लेकिन अगर किसी मुसीबत में पड़ जाओ, तो हमें याद जरूर करना। हम तुम्हारी मदद के लिए हमेशा तैयार रहेंगे।”

राजा का अन्यायपूर्ण निर्णय

अगली सुबह वह तीसरा मित्र भूख लगने पर बाजार पहुँचा। वहाँ एक दुकान के बाहर लिखा था—

“एक कौड़ी में जलेबी, एक कौड़ी में खाजा,
खूब खाओ मिठाइयाँ, मत सोचो राजा!”

वह मिठाई खरीदकर खाने ही लगा था कि अचानक कुछ सैनिकों ने आकर उसे पकड़ लिया। दरअसल, पिछली रात राजा के महल में चोरी हो गई थी, और राजा मूर्खसेन का अजीब कानून था कि जो भी बाहरी व्यक्ति सुबह सबसे पहले पकड़ा जाएगा, वही चोर होगा और उसे तुरंत फाँसी दे दी जाएगी!

यात्री ने बहुत विनती की, लेकिन सैनिकों ने उसकी एक न सुनी। राजा मूर्खसेन को जब यह खबर मिली, तो उसने बिना किसी जाँच-पड़ताल के घोषणा कर दी, “इसे शाम को नगर चौक में फाँसी पर लटका दिया जाए!”

मित्रों की चालाकी

बेचारा यात्री अपनी किस्मत को कोस रहा था कि तभी उसे अपने दोनों मित्रों की याद आई। उसने तुरंत एक पत्र लिखकर एक संदेशवाहक से भिजवा दिया। जैसे ही उसके मित्रों को खबर मिली, वे तत्काल उसकी सहायता के लिए निकल पड़े।

जब वे राजा के दरबार में पहुँचे, तो देखा कि उनका मित्र फाँसी के तख्ते पर चढ़ाया जा रहा था।

पहले मित्र ने चिल्लाकर कहा, “रुकिए, महाराज! चोरी इसने नहीं, हमने की थी!”

राजा ने क्रोधित होकर कहा, “तब तो मैं तुम तीनों को फाँसी पर लटका दूँगा!”

दूसरा मित्र तुरंत बोला, “जी हाँ, हमें फाँसी दीजिए, लेकिन जल्दी करिए! हमारी किस्मत बहुत अच्छी है, क्योंकि इस समय जो भी फाँसी पर चढ़ेगा, वह सीधे स्वर्ग जाएगा। हम स्वर्ग जाना चाहते हैं!”

यह सुनकर राजा मूर्खसेन चौंक गया। उसने आश्चर्य से पूछा, “क्या सच में? स्वर्ग जाने का कोई और तरीका है क्या?”

मित्रों ने सिर हिलाते हुए कहा, “नहीं, महाराज! यह सुनहरी घड़ी सिर्फ उन्हीं के लिए आई है, जो अभी फाँसी पर चढ़ेंगे। अगर आप जल्दी नहीं करेंगे, तो यह मौका निकल जाएगा!”

राजा की मूर्खता का अंत

राजा मूर्खसेन गहरे सोच में पड़ गया। वह बहुत ही लालची और स्वार्थी था। उसने तुरंत अपने मंत्रियों से कहा, “अगर स्वर्ग जाने का यह सबसे बढ़िया तरीका है, तो मुझे पहले जाना चाहिए!”

राजा ने खुद जल्लाद को आदेश दिया, “पहले मुझे फाँसी पर लटकाओ, फिर इन्हें!”

जैसे ही राजा मूर्खसेन को फाँसी दी गई, पूरे राज्य में खुशी की लहर दौड़ गई। जनता ने उसके मूर्ख मंत्रियों को भी राज्य से बाहर भगा दिया।

नया न्याय और सुखद अंत

तीनों मित्रों में से एक को जनता ने नया राजा बना दिया। उसने सबसे पहले राजा मूर्खसेन द्वारा बनाए गए सभी अन्यायपूर्ण कानूनों को समाप्त कर दिया और राज्य में न्याय और समझदारी की स्थापना की।

कहानी से सीख:

  • बिना सोचे-समझे लालच में फँसना हमेशा घातक होता है।
  • अंधविश्वास और मूर्खता से बचना चाहिए, वरना विनाश निश्चित है।
  • समझदारी और बुद्धिमानी से कठिन परिस्थितियों को भी हल किया जा सकता है।
  • गलत शासक का अंत अवश्य होता है और सच्चाई की जीत होती है।

यह कहानी हमें यह सिखाती है कि मूर्खता और अन्याय का अंत निश्चित होता है, और बुद्धिमानी से बड़ी से बड़ी मुसीबत भी टाली जा सकती है!

Disclaimer:

This story has been adapted and rewritten based on an Indian folktale. The names, characters, and events have been modified to create a unique and original retelling while preserving the essence of the moral lesson. This version has been independently crafted to ensure originality and does not intend to infringe upon any copyrights or intellectual property rights of the original publication. Any resemblance to real persons, places, or events is purely coincidental.

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