मोमोतारो: आड़ू के बेटे की कथा (Momotaro, the Story of the Son of a Peach)

(यह कहानी जापान की एक पुरानी लोककथा पर आधारित है)

आड़ू से निकला एक बच्चा!

बहुत समय पहले की बात है। एक बूढ़ा आदमी और उसकी बूढ़ी पत्नी एक छोटे से गाँव में रहते थे। वे गरीब किसान थे और मेहनत-मज़दूरी कर अपना पेट भरते थे। बूढ़ा आदमी खेतों में घास काटने जाता, जबकि बूढ़ी औरत घर के कामों के साथ-साथ अपने छोटे से धान के खेत की देखभाल करती।

एक दिन, हमेशा की तरह बूढ़ा आदमी पहाड़ियों की ओर घास काटने चला गया और बूढ़ी औरत कपड़े धोने के लिए नदी किनारे पहुँची।

वसंत का मौसम था। चारों ओर हरियाली छाई हुई थी। नदी के किनारे की घास मखमल जैसी हरी दिख रही थी, और बयार में हिलती बिलायती बबूल की कोमल कलियाँ झूम रही थीं। ठंडी हवा बह रही थी, जिससे पानी की सतह पर छोटी-छोटी लहरें उठ रही थीं। जैसे ही हवा बूढ़ी औरत के चेहरे से टकराई, उसके मन में अजीब-सी खुशी की लहर दौड़ गई — जैसे कोई अच्छी खबर आने वाली हो

बूढ़ी औरत ने नदी किनारे अपना बांस की टोकरी रखी और कपड़े धोने लगी। पानी इतना साफ था कि नदी के तल में छोटे-छोटे रंग-बिरंगे कंकड़ साफ दिखाई दे रहे थे। वह जैसे ही कपड़ों को पत्थर पर रगड़ रही थी, अचानक एक विशाल आड़ू पानी में तैरता हुआ उसकी ओर आता दिखा।

उसने अपने जीवन में कभी इतना बड़ा और रसीला आड़ू नहीं देखा था। वह मन ही मन बोली — अरे वाह! यह आड़ू कितना स्वादिष्ट लग रहा है! इसे तो मैं अपने बूढ़े आदमी के लिए जरूर ले जाऊँगी!”

लेकिन आड़ू उसकी पहुँच से दूर था। उसने सोचा कि कोई लाठी ढूँढकर उसे किनारे लाए, लेकिन अगर वह लाठी ढूँढने जाती, तो आड़ू बह जाता। तभी उसके दिमाग में एक पुराना जादुई मंत्र आया। वह तालियाँ बजाने लगी और नदी के पानी की लय में गाते हुए बोली—

जो दूर है, वो कड़वा है,
जो पास है, वो मीठा है,
अरे ओ आड़ू, दूर मत जाना,
मेरे पास ही आ जाना!”

अरे! कमाल हो गया! जैसे ही उसने यह गीत गाया, आड़ू धीरे-धीरे किनारे की ओर बहने लगा। कुछ ही क्षणों में वह ठीक उसके सामने आकर रुक गयाबूढ़ी औरत की खुशी का ठिकाना न रहा! उसने जल्दी से आड़ू उठाया, टोकरी में कपड़े रखे और तेज़ क़दमों से घर की ओर चल पड़ी

सारा दिन बूढ़ी औरत अपने पति के लौटने का इंतज़ार करती रही। जब सूर्य डूबने को आया, तो बूढ़ा आदमी अपने कंधे पर भारी-भरकम घास का गट्ठर उठाए घर लौटा। वह इतना थका था कि अपनी दरांती पर झुककर धीरे-धीरे चल रहा था। जैसे ही बूढ़ी औरत ने उसे देखा, वह खुशी से चिल्लाई—

अरे, तुम आ गए! मैं कब से तुम्हारा इंतजार कर रही थी!”

बूढ़े आदमी ने आश्चर्य से पूछा — अरे, क्या हुआ? आज तुम इतनी उतावली क्यों हो?”

बूढ़ी औरत ने मुस्कुराते हुए कहा — अरे, कुछ नहीं! बस तुम्हारे लिए एक खास तोहफ़ा है!”

बूढ़ा आदमी चौंक गया। तोहफ़ा?” उसने आश्चर्य से पूछा।

बूढ़ी औरत अंदर गई और बड़ा सा आड़ू लेकर आई। आड़ू इतना भारी लग रहा था कि जैसे उसमें कोई छिपा हुआ राज़ हो! उसने खुशी-खुशी आड़ू अपने पति को दिखाते हुए कहा — देखो ज़रा! क्या तुमने अपनी ज़िंदगी में कभी इतना बड़ा आड़ू देखा है?”

बूढ़े आदमी ने आश्चर्य से आँखें फाड़ दीं और बोला — नहीं! यह सच में बहुत बड़ा है! तुमने इसे कहाँ से खरीदा?”

बूढ़ी औरत हँसते हुए बोली — अरे, मैंने इसे खरीदा नहीं! यह तो नदी में बहता हुआ खुद मेरे पास आया था!”

बूढ़ा आदमी बहुत खुश हुआ। उसने कहा — तो चलो, इसे काटकर खाते हैं! मैं तो बहुत भूखा हूँ!”

उसने चाकू उठाया और आड़ू को काटने ही वाला था किअचानक आड़ू अपने आप बीच से फट गया और अंदर से एक प्यारा-सा बच्चा बाहर आ गया!

बूढ़ा आदमी और बूढ़ी औरत यह देखकर आश्चर्य से ज़मीन पर गिर पड़े। तभी वह नन्हा बालक मुस्कुराकर बोला — डरो मत, बाबा और अम्मा! न मैं राक्षस हूँ और न ही कोई परी। मैं स्वर्ग से तुम्हारे लिए भेजा गया हूँ! तुम सालों से संतान के लिए तरस रहे थे, तुम्हारी प्रार्थना सुन ली गई है। अब मैं तुम्हारा बेटा बनकर आया हूँ!”

यह सुनकर बूढ़े दंपति की आँखों से खुशी के आँसू बहने लगे। वे कभी बच्चे को गोद में लेते, कभी उसे निहारते। आखिरकार, उन्होंने उस बच्चे का नाम रखा — मोमोतारो” यानी ‘आड़ू का बेटा’!

मोमोतारो का संकल्प

समय बीतता गया और मोमोतारो बड़ा होने लगा। वह बहुत ताकतवर और बुद्धिमान था। पंद्रह वर्ष की उम्र में ही वह गाँव के सभी लड़कों से ज़्यादा लंबा और मज़बूत हो गया था।

एक दिन, मोमोतारो ने अपने माता-पिता से कहा — माँ-पिता जी, आपने मुझे बहुत प्यार से पाला है। अब मेरी बारी है कि मैं कुछ महान कार्य करूँ। मैंने सुना है कि उत्तर-पूर्व में एक द्वीप है जहाँ दुष्ट राक्षस रहते हैं। वे गाँवों पर हमला करते हैं, निर्दोष लोगों को मारते हैं, और लूटपाट करते हैं। मैं उन राक्षसों को हराने के लिए वहाँ जाना चाहता हूँ!”

बूढ़े माता-पिता पहले तो घबरा गए, लेकिन फिर उन्हें याद आया कि मोमोतारो कोई साधारण बालक नहीं था।

बूढ़े आदमी ने कहा, अगर यही तुम्हारी इच्छा है, तो जाओ, लेकिन ध्यान रखना!”

बूढ़ी औरत ने तुरंत मोमोतारो के लिए किबिडांगो (विशेष जापानी चावल के केक) बनाए, जो खाने से ताकत बढ़ती थी।

मोमोतारो और उसके साथी – एक अनोखी टोली का निर्माण

सुबह से चलते-चलते दोपहर हो गई। मोमोतारो को भूख महसूस होने लगी, तो उसने अपनी पोटली खोली और एक चावल का केक निकालकर सड़क किनारे एक घने पेड़ की छांव में बैठ गया। जैसे ही वह आराम से खाना खाने लगा, अचानक झाड़ियों से एक बड़ा, ताकतवर कुत्ता निकला। उसकी आँखों में गुस्सा था, दाँत नुकीले थे, और वह सीधा मोमोतारो की ओर बढ़ा।

अरे! तू बड़ा बदतमीज़ है! बिना मेरी इजाज़त मेरे खेत से कैसे गुजर रहा है?” कुत्ते ने गुर्राते हुए कहा।
अगर अपनी जान बचानी है, तो अपनी पोटली में जितने केक हैं, सब मुझे दे दे! नहीं तो मैं तुझे काट डालूँगा!”

मोमोतारो उसकी धमकी सुनकर ज़ोर से हँसा।

अरे ओ मोटे कुत्ते! लगता है तू मुझे पहचानता नहीं। मैं मोमोतारो हूँ! मैं उन दुष्ट राक्षसों को हराने जा रहा हूँ, जो उत्तर-पूर्व के टापू पर राज कर रहे हैं। अगर तूने मुझे रोकने की कोशिश की, तो मैं तुझे सिर से लेकर पंजों तक चीर डालूँगा!”

मोमोतारो की गर्जना सुनते ही कुत्ते का घमंड चूर-चूर हो गया। उसकी पूंछ नीचे लटक गई और वह शर्मिंदा होकर ज़मीन पर सिर झुका बैठ गया।

अरे! क्या सच में तुम मोमोतारो हो?” कुत्ता बोला। तुम्हारी ताकत के चर्चे तो मैंने बहुत सुने हैं, पर मैं तुम्हें पहचान न सका। मुझसे भारी गलती हो गई! कृपया मुझे माफ़ कर दो! क्या मैं भी तुम्हारे साथ चल सकता हूँ? मुझे अपने सेवकों में शामिल कर लो!”

मोमोतारो ने थोड़ी देर सोचा और फिर कहा, अगर तुम्हारी इच्छा है, तो तुम मेरे साथ चल सकते हो।”

कुत्ते की खुशी का ठिकाना न रहा। लेकिन फिर वह मासूमियत से बोला, वैसे, मैं बहुत भूखा हूँ… क्या तुम मुझे भी एक चावल का केक दे सकते हो?”

मोमोतारो मुस्कुराया और बोला, ये जापान के सबसे बढ़िया केक हैं, पूरे नहीं दे सकता, लेकिन आधा ज़रूर दूँगा।”

कुत्ते ने झपटकर केक का टुकड़ा पकड़ लिया और खुशी-खुशी मोमोतारो के साथ चल पड़ा।

मोमोतारो और कुत्ता पहाड़ों, घाटियों और जंगलों से होते हुए आगे बढ़ रहे थे। तभी, सामने वाले पेड़ से फुर्ती से एक बंदर नीचे कूदा और झट से उनके पास आ गया।

नमस्ते मोमोतारो! तुम्हारा इस इलाके में स्वागत है। क्या मैं भी तुम्हारे साथ चल सकता हूँ?”

कुत्ता चिढ़कर गुर्राया, अरे! मोमोतारो के साथ पहले से ही मैं हूँ। लड़ाई में तुम्हारे जैसे नटखट बंदर की क्या ज़रूरत? हम राक्षसों से लड़ने जा रहे हैं, तुम्हें यहाँ से भाग जाना चाहिए!”

बंदर और कुत्ता झगड़ने लगे। दोनों के बीच लड़ाई होते देख मोमोतारो ने गुस्से में बीच में आकर कहा, बस करो! अभी से झगड़ रहे हो? ज़रा धीरज रखो!”

फिर मोमोतारो ने बंदर की ओर मुड़कर पूछा, तुम कौन हो?”

मैं इस जंगल में रहता हूँ,” बंदर बोला। मैंने सुना कि तुम राक्षसों से लड़ने जा रहे हो, और मुझे भी इस युद्ध में शामिल होना है! मेरे लिए इससे बड़ी खुशी की बात और क्या होगी!”

मोमोतारो उसकी हिम्मत से प्रभावित हुआ। उसने एक चावल के केक का टुकड़ा देते हुए कहा, बहुत बढ़िया! तुम भी हमारे साथ चल सकते हो!”

बंदर टोली में शामिल हो गया, लेकिन कुत्ते और बंदर की बनती नहीं थी। दोनों रास्ते भर आपस में झगड़ते रहे, जिससे मोमोतारो को बहुत गुस्सा आया। परेशान होकर उसने कुत्ते को आगे एक झंडा पकड़ाकर भेजा और बंदर को तलवार देकर पीछे कर दिया। खुद वह उनके बीच लोहे का युद्ध-पंखा लेकर चलने लगा।

थोड़ी दूर चलने के बाद वे एक हरे-भरे मैदान में पहुँचे। अचानक, एक सुंदर तीतर पक्षी हवा में से नीचे उतरा और उनके रास्ते में आकर बैठ गया।

उसका रंग बेहद आकर्षक था — उसके पंखों में पाँच अलग-अलग रंग थे, और सिर पर लाल रंग की टोपी जैसी कलगी थी। मोमोतारो ने इससे पहले इतना खूबसूरत पक्षी कभी नहीं देखा था।

कुत्ता फौरन उस पर झपट पड़ा, लेकिन तीतर ने भी जोरदार मुकाबला किया। अपने नुकीले पंजों से उसने कुत्ते की पूंछ पर वार किया। लड़ाई काफ़ी तेज़ हो रही थी।

मोमोतारो को तीतर की बहादुरी देखकर बहुत अच्छा लगा। उसने लड़ाई रोककर कुत्ते को पीछे खींचा और तीतर से कहा, अरे बदमाश! तू मेरी यात्रा में बाधा डाल रहा है! अगर तू तुरंत समर्पण कर दे, तो मैं तुझे अपने दल में शामिल कर लूँगा। वरना इस कुत्ते को तेरा सिर धड़ से अलग करने में ज़रा भी देर नहीं लगेगी!”

तीतर घबराकर बोला, मुझे माफ़ कर दो! मैं मोमोतारो की टोली में शामिल होना चाहता हूँ! मैं भी राक्षसों के खिलाफ़ लड़ूँगा। कृपया मुझे अपने साथ ले चलो!”

मोमोतारो ने मुस्कुराते हुए कहा, तुमने इतनी जल्दी हार मान ली, यह तुम्हारी समझदारी है। ठीक है, अब तुम भी हमारे साथ चल सकते हो!”

कुत्ते ने खीझते हुए पूछा, अब इस चिड़िया को भी साथ ले चलेंगे?”

मोमोतारो ने सख्त आवाज़ में कहा, तुम बेकार के सवाल मत करो! यह मेरी टोली है, और जिसे मैं चाहूँगा, उसे शामिल करूँगा!”

अब मोमोतारो के पास तीन साथी हो चुके थे — कुत्ता, बंदर और तीतर। लेकिन कुत्ते और बंदर की पहले से ही लड़ाई हो रही थी, अब तीतर के आने से माहौल और बिगड़ने लगा। तीनों में अक्सर झगड़ा हो जाता।

यह देखकर मोमोतारो ने कड़क आवाज़ में आदेश दिया,

सुनो सभी! किसी भी सेना में सबसे ज़रूरी चीज़ क्या होती है? एकता! जैसा कहा जाता है — ‘धरती का लाभ स्वर्ग के लाभ से भी बड़ा होता है!’ यानी अपने साथियों के साथ एकजुट रहना किसी भी जीत से बड़ा होता है। अगर हम आपस में ही झगड़ते रहेंगे, तो दुश्मनों से कैसे लड़ेंगे? इसलिए याद रखो, अगर आगे से कोई भी झगड़ा करेगा, तो उसे मैं अपनी सेना से निकाल दूँगा!”

तीनों ने झटपट वादा किया कि वे अब झगड़ा नहीं करेंगे।

अब मोमोतारो की बहादुर टोली पूरी तरह तैयार थी। कुत्ते के पास झंडा था, बंदर के पास तलवार, और तीतर अपनी तेज़ चोंच और पंजों से लड़ाई में मदद करेगा।

तीनों अब दोस्त बन चुके थे और मोमोतारो के साथ पूरे जोश से आगे बढ़ रहे थे…!

समुद्र का डर और वीरता की परीक्षा

दिन-ब-दिन सफर करते हुए मोमोतारो और उसके साथी आखिरकार उत्तर-पूर्वी सागर के किनारे पहुँच गए। दूर-दूर तक सिर्फ लहरों का शोर था, कहीं कोई द्वीप नहीं दिख रहा था।

अब तक कुत्ता, बंदर और तीतर बड़े जोश से मोमोतारो के साथ चले थे, लेकिन यह पहली बार था जब उन्होंने समुद्र देखा था। उसकी विशालता देखकर वे सहम गए और चुपचाप एक-दूसरे को देखने लगे। अब सवाल यह था कि वे इस अथाह जलराशि को पार कर राक्षसों के द्वीप तक कैसे पहुँचेंगे?

मोमोतारो ने तुरंत उनकी झिझक को भाँप लिया और उन्हें परखने के लिए कड़क आवाज़ में बोला—

क्या हुआ? तुम सब डर गए? क्या तुम सच में कायर हो? अगर तुम्हारी हिम्मत इतनी ही कमज़ोर है, तो तुम्हें साथ ले जाना बेकार है। मैं अकेले ही राक्षसों से युद्ध करने चला जाऊँगा। तुम सब अभी के अभी मुक्त हो—जाओ!”

तीनों साथी चौंक गए। यह अप्रत्याशित डाँट सुनकर उन्होंने मोमोतारो का हाथ पकड़ लिया और गिड़गिड़ाने लगे — कृपया, मोमोतारो! हमें मत छोड़ो! हम इतनी दूर साथ आए हैं! हमें यहाँ अकेला छोड़ देना अमानवीय होगा!”

बंदर आगे बढ़कर बोला — हम समुद्र से डरते नहीं हैं!”

तीतर बोला — हमें साथ ले चलो!”

कुत्ता भी बोला — हम तुम्हारा साथ कभी नहीं छोड़ेंगे!”

उनकी बातों में अब आत्मविश्वास झलकने लगा था। मोमोतारो मुस्कराया और बोला — ठीक है, लेकिन सावधान रहना!”

समुद्र यात्रा और मित्रों की हिम्मत

अब मोमोतारो ने एक छोटी सी नाव का इंतज़ाम किया और चारों उस पर सवार हो गए। सौभाग्य से, हवा अनुकूल थी, और उनकी नाव बाण की तरह समुद्र में आगे बढ़ी।

पहली बार पानी पर सफर कर रहे कुत्ते, बंदर और तीतर शुरू में लहरों से डर गए, लेकिन धीरे-धीरे उन्हें जलयात्रा की आदत हो गई। अब वे डेक पर टहलते, आपस में अपने वीरतापूर्ण कारनामे सुनाते और खेल-खेल में सफर काटते। मोमोतारो को भी उनके साथ हँसी-मज़ाक में बड़ा आनंद आने लगा।

लेकिन उसके मन में एक ही धुन सवार थी — राक्षसों का नाश करना!

कुछ दिनों बाद, जब सूर्य चमक रहा था, दूर क्षितिज पर एक भू-भाग दिखाई दिया। मोमोतारो की आँखें चमक उठीं — यही है राक्षसों का किला!”

युद्ध की शुरुआत

मोमोतारो ने अपने तीनों साथियों की ओर देखा। वह जानता था कि सबसे पहले हमला करने का काम तीतर को सौंपना होगा। उसने तीतर से कहा —  हम सबमें सबसे बड़ी ताकत तुम्हारे पंखों में है। उड़कर किले की छत पर जाओ और राक्षसों को ललकारो। हम तुम्हारे पीछे हैं!”

तीतर तुरंत पंख फड़फड़ाता हुआ किले की छत पर जा पहुँचा। वहाँ से उसने ऊँची आवाज़ में ललकारा—

ओ राक्षसों! ध्यान से सुनो! महान योद्धा मोमोतारो तुम्हारे किले पर आक्रमण करने आया है। अगर अपनी जान बचानी है तो तुरंत आत्मसमर्पण कर दो! और यदि लड़ाई ही करनी है, तो याद रखो—हम तीनों तुम्हें नोच-नोचकर टुकड़े-टुकड़े कर देंगे!”

राक्षसों ने ऊपर देखा और एक अकेले तीतर को देखकर ठहाके लगाने लगे—

हा-हा! यह छोटा सा पंछी हमें धमका रहा है? ठहर, अभी लोहे की गदा से तुझे मार गिराते हैं!”

वे अपनी शेर की खाल से बनी पतलून पहनकर और लोहे की गदाएँ उठाकर तीतर पर वार करने दौड़े। मगर तीतर बहुत चतुर था! वह फुर्ती से इधर-उधर उड़कर वारों से बचता और अपनी चोंच और पंखों से राक्षसों की आँखों पर वार करता।

इसी बीच, मोमोतारो ने नाव किनारे लगा दी और कुत्ते-बंदर के साथ किले की ओर बढ़ चला।

रास्ते में उन्होंने दो सुंदर युवतियों को देखा, जो एक धारा में खून से सने वस्त्र धो रही थीं। उनके चेहरे पर गहरा दुख था और आँसू टपक रहे थे।

मोमोतारो ने पूछा — तुम कौन हो? और इतना क्यों रो रही हो?”

वे करुणा से बोलीं — हम दानव राजा की बंदिनी हैं। वह हमें हमारे परिवार से छीन लाया और हमें नौकर बना दिया। लेकिन वह यहीं नहीं रुकेगा जल्द ही वह हमें मारकर खा जाएगा!”

यह सुनकर मोमोतारो की मुट्ठियाँ भींच गईं। उसने गंभीर स्वर में कहा — अब कोई आँसू मत बहाओ। मैं तुम्हें छुड़ाऊँगा! बस, मुझे किले में घुसने का कोई रास्ता दिखाओ!”

युवतियों ने एक गुप्त दरवाजे की ओर इशारा किया। वह इतना संकरा था कि मोमोतारो मुश्किल से उसमें घुस सका।

किले के अंदर पहुँचते ही मोमोतारो, कुत्ते और बंदर ने राक्षसों पर धावा बोल दिया।

पहले तो राक्षसों को लगा कि सिर्फ एक तीतर से लड़ना है, लेकिन जब मोमोतारो और उसके साथी भी उन पर टूट पड़े, तो वे घबरा गए। वे चारों इतने जोश और ताकत से लड़े, मानो सौ योद्धा एक साथ युद्ध कर रहे हों।

कई राक्षस किले की दीवारों से गिरकर चट्टानों पर कुचल गए, कुछ समुद्र में डूबकर मारे गए, और बाकी कुत्ते-बंदर की मार से ढेर हो गए।

आखिर में दानव राजा ही बचा। जब उसने देखा कि मोमोतारो अजेय है, तो उसने हथियार डाल दिए और घुटनों के बल गिरकर गिड़गिड़ाने लगा — मुझे क्षमा कर दो! मैं हार मानता हूँ! मैं तुम्हें अपने किले का सारा खज़ाना दे दूँगा, बस मेरी जान बख्श दो!”

मोमोतारो ने उसकी ओर देखा और हँसकर कहा — तूने कितने निर्दोष लोगों को मारा, उनके परिवार उजाड़े, और अब जीवन की भीख माँग रहा है? तेरी दुष्टता के लिए क्षमा नहीं हो सकती!” मोमोतारो ने उसे रस्सियों से बाँधकर बंदर के हवाले कर दिया।

विजय और घर वापसी

अब मोमोतारो ने किले के सारे कैदियों को मुक्त किया, और वहाँ का सारा खज़ाना अपने साथ ले चला।

जब वे गाँव लौटे, तो पूरा देश मोमोतारो की वीरता पर गर्व करने लगा। उन्होंने राक्षसों से अपने देश को मुक्त कर दिया था!

उनके माता-पिता की ख़ुशी का ठिकाना न रहा। अब उनके पास इतना धन था कि वे शेष जीवन सुख-शांति से बिता सकते थे।

इस तरह, मोमोतारो ने वीरता, साहस और मित्रता की मिसाल कायम की!

——- समाप्त ——-

Disclaimer:

This story is a Hindi translation of the story taken from below mentioned reference(s). The purpose of this translation is to provide access to the content for Hindi-speaking readers. All rights to the original content remain with its respective author and publisher. This translation is presented solely for educational and informational purposes, and not to infringe on any copyright. If any copyright holder has an objection, they may contact us, and we will take the necessary action.

References:

Ozaki, Y. (1908). Momotaro, or the Story of the Son of a Peach. Japanese Fairy Tales (Lit2Go Edition). Retrieved February 21, 2025, from https://etc.usf.edu/lit2go/72/japanese-fairy-tales/4845/momotaro-or-the-story-of-the-son-of-a-peach/

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