राशोमोन का राक्षस (The Monster of Rashomon)

(यह जापानी लोककथा का हिंदी रूपांतरण है — यह एक ऐसे योद्धा की कहानी जो अपने साहस से भय और अंधविश्वास को चुनौती देता है, और हमें सिखाती है कि सच्चा वीर वही है जो न सिर्फ तलवार से, बल्कि सोच और संकल्प से भी विजय प्राप्त करता है।)

बहुत समय पहले की बात है। जापान के क्योटो (Kyoto) शहर में एक डरावनी अफ़वाह ने लोगों की नींदें उड़ा दी थीं। कहा जाता था कि सूर्यास्त के बाद, राशोमोन फाटक (Gate of Rashomon) के पास एक भयानक राक्षस आ जाता है और जो भी वहाँ से गुज़रता है, उसे उठा ले जाता है।
ना उसकी चीख सुनाई देती, ना शरीर का पता चलता — लोग गायब हो जाते और फिर कभी नहीं मिलते। कहा जाता था कि यह राक्षस न सिर्फ़ लोगों को मारता था, बल्कि उनका मांस भी खाता था।
लोग इतने डरे हुए थे कि शाम ढलते ही अपने घरों में बंद हो जाते। राशोमोन फाटक एक खौफ़ का नाम बन चुका था।

उसी शहर में रहते थे एक प्रसिद्ध सेनापति – राइको (Raiko)। वे अपने साहसिक कारनामों के लिए जाने जाते थे। कुछ साल पहले उन्होंने ओएयामा पर्वत (Oeyama) पर हमला किया था, जहाँ एक राक्षसों का गिरोह रहता था। इन राक्षसों का सरदार इंसानों के ख़ून को शराब समझकर पीता था।
राइको ने उन्हें धूल चटा दी थी और मुख्य राक्षस का सिर धड़ से अलग कर दिया था।
राइको के साथ पाँच निष्ठावान और पराक्रमी योद्धा भी रहते थे। ये पाँचों योद्धा हर लड़ाई में उनके साथ होते थे।

एक शाम ये पाँचों योद्धा बैठकर दावत कर रहे थे—मदिरा (साके – Sake) पीते, मछलियाँ खाते, एक-दूसरे के साहस के क़िस्से सुनाते।
तभी पहले योद्धा होजो (Hojo) ने कहा,
“क्या तुम सबने सुना है? हर शाम राशोमोन फाटक पर राक्षस आता है और लोगों को उठा ले जाता है।”

दूसरे योद्धा वतनाबे (Watanabe) ने हँसते हुए जवाब दिया,
“ये सब बकवास है! सारे राक्षसों का सफ़ाया तो राइको ने कर दिया था। अगर कोई बचा होता, तो वो हमारे शहर में आने की हिम्मत नहीं करता!”

होजो ने चुटकी ली,
“तो क्यों ना तुम जाकर अपनी बात सिद्ध करो?”

वतनाबे को चुनौती स्वीकार करनी ही थी—उसकी वीरता दाँव पर थी।
“मैं अभी जाता हूँ और सच्चाई का पता लगाता हूँ,” कहकर वो तैयार हो गया।

वतनाबे ने अपनी तलवार कसी, कवच पहना और भारी हेलमेट लगाया। साथियों से एक कागज पर अपने दस्तख़त करवाए और कहा,
“मैं ये कागज़ राशोमोन फाटक पर चिपकाऊँगा। कल सुबह जाकर देख लेना कि मैं गया था। और हो सकता है एकाध राक्षस को भी पकड़ लाऊँ!”
फिर वो घोड़े पर सवार होकर निकल पड़ा।

रात बहुत काली थी — ना चाँद, ना तारे। ऊपर से बारिश और तेज़ आँधी!
पर वतनाबे रुका नहीं। उसने अपनी शपथ को निभाने का मन बना लिया था।

राशोमोन फाटक तक पहुँचने पर चारों ओर सन्नाटा था। वतनाबे ने इधर-उधर देखा — कुछ नहीं था।
“मैंने कहा था, ये सब अफ़वाह है,” वो बड़बड़ाया।
कागज़ फाटक पर चिपकाया और जैसे ही वापस मुड़ने लगा, उसे किसी की आहट महसूस हुई।

उसके सिर के पीछे किसी ने उसका हेलमेट पकड़ लिया।

“कौन है?” उसने चिल्लाकर कहा।
जवाब में एक आवाज़ आई, “ठहरो!”

उसने पीछे हाथ बढ़ाया और जो महसूस किया, वो किसी इंसान का हाथ नहीं था — वो हाथ पेड़ के तने जितना मोटा और बालों से ढका था।

वो समझ गया — ये राक्षस है।

वतनाबे ने बिना समय गंवाए अपनी तलवार निकाली और उस मोटे हाथ पर ज़ोरदार वार किया।
एक दर्दनाक चीख गूंजी, और फिर सामने से एक विशालकाय राक्षस प्रकट हुआ!

उसकी आँखें जैसे सूरज में चमकती हुई आईने, मुँह से आग निकल रही थी।
पर वतनाबे डरा नहीं — उसने डटकर मुकाबला किया। दोनों के बीच भयंकर युद्ध हुआ।

आख़िरकार, जब राक्षस को लगा कि वो हार सकता है, तो वो भाग खड़ा हुआ।

वतनाबे ने राक्षस का पीछा किया, पर वो बहुत तेज़ था।
वापस आकर उसने ज़मीन पर कुछ महसूस किया। वो राक्षस का कटा हुआ हाथ था!

“कमाल है! ये तो मेरी बहादुरी का सबसे बड़ा सबूत है!”
वो हाथ लेकर घर लौट आया।

सभी साथियों ने उसका स्वागत किया। जश्न हुआ, और वतनाबे की बहादुरी की चर्चा पूरे शहर में फैल गई।

पर वतनाबे को चैन नहीं था। उसे डर था कि राक्षस वापस आएगा।
उसने लोहे की पट्टियों वाला एक मज़बूत बक्सा बनवाया और हाथ उसमें बंद कर दिया।

एक रात दरवाज़े पर दस्तक हुई। एक बुज़ुर्ग महिला खड़ी थी—बड़ी सज्जन लग रही थी।

“मैं आपकी बचपन की दाई हूँ,” उसने कहा।

वतनाबे भावुक हो गया और उसे अंदर बुला लिया।

बातों-बातों में वृद्धा ने कहा,
“सुना है आपने एक राक्षस का हाथ काटा! क्या मुझे वो देखने मिलेगा?”

वतनाबे ने मना किया।

“मैं आपकी दाई हूँ, क्या मुझ पर भी शक है?” उसने भावभीनी विनती की।

आख़िरकार, वतनाबे पिघल गया। उसने बक्सा खोला और वृद्धा को बुलाया।

वो धीरे-धीरे पास आई, फिर अचानक हाथ बढ़ाया और बक्से से राक्षस का हाथ खींच लिया।

“वाह! मेरा हाथ वापस मिल गया!” और वो वृद्धा एक पल में राक्षस में बदल गई!

वतनाबे ने झटपट तलवार निकाली और हमला किया, लेकिन राक्षस फुर्ती से छत तोड़कर बादलों में गायब हो गया।

उस दिन के बाद वह कभी क्योटो लौटकर नहीं आया। शायद उसे वतनाबे की बहादुरी का डर था।

लोग रात में भी बिना डर के बाहर निकलने लगे। वतनाबे का नाम इतिहास में अमर हो गया।


सीख:
“साहस, धैर्य और सच्ची नीयत से हर डर और राक्षसी ताक़त का सामना किया जा सकता है।”
सच्चे योद्धा की पहचान विपत्ति में होती है। डर को आँखों में देखकर ललकारना ही असली शौर्य है।

Disclaimer:

The purpose of this translation of story in Hindi is to provide access to the content for Hindi-speaking readers. All rights to the original content remain with its respective author and publisher. This translation is presented solely for educational and informational purposes, and not to infringe on any copyright. If any copyright holder has an objection, they may contact us, and we will take the necessary action.

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