जुलाई की एक नम सी रात थी। दिन भर की तपन के बाद छत पर सोना जैसे एक राहत भरा तोहफ़ा था। अचानक नींद टूटी जब बदली हुई हवा के साथ ठंडी-ठंडी बूँदें गालों से टकराईं। ऊपर नजर उठाई तो आसमान घने काले बादलों से ढका हुआ था। बिजली कड़क रही थी, मानो वर्षा का घोष नगाड़ा बज रहा हो। हम सब भागे-भागे अंदर चले गए, लेकिन मन वहीं ठहर गया — वर्षा के स्वागत में।
ग्रीष्म की तपन से तपती धरती पर जब पहली बूंद गिरती है, तो वह केवल पानी नहीं होता — वह जीवन का संदेश होता है। आँधियों से झुलसे पेड़-पौधे हरियाली में झूमने लगते हैं, सूखे तालाबों में पानी की लहरें मचलने लगती हैं और गर्म हवा की जगह एक सजीव ताजगी भर जाती है। ‘सूखी धरती प्यासे मन जैसी होती है, और वर्षा उस पर ईश्वर की छाया है।’
सावन आते ही प्रकृति जैसे श्रृंगार करती है। हर पेड़ नए वस्त्र पहन लेता है, हर कोना हरियाली से ढक जाता है। आकाश में बादलों का मेला लगता है, बिजली की चमक मानो स्वर्णिम आभूषण पहनाए। मोर नाचते हैं, कोयल गुनगुनाती है, और पूरा वातावरण किसी प्रेम गीत की तरह मधुर हो जाता है। ऐसा लगता है जैसे सारा संसार कोई उत्सव मना रहा हो।
पहाड़ी इलाकों में तो इस ऋतु का जादू और भी निखरता है। झरने झर-झर बहते हैं, उनके स्पर्श से हवा भी नृत्य करने लगती है। बादलों की गोद में बसी घाटियाँ, धुंध में लिपटे वृक्ष, और बरसात में चमकते पत्थर — यह दृश्य आँखों में नहीं, दिल में बस जाते हैं। लगता है मानो पर्वतों ने अपने हृदय के सबसे मधुर भावों को वर्षा में उकेर दिया हो।
वर्षा केवल दृश्यात्मक सुंदरता नहीं, एक आत्मिक अनुभव है। यह खेतों में अनाज भरती है, प्यास बुझाती है, धरती को जीवन देती है। किसान इसकी प्रतीक्षा में आसमान तकते हैं, बच्चे कागज़ की नावों से खेलते हैं और स्त्रियाँ झूले पर सावन के गीत गाती हैं। ‘सावन के झूले, प्रेम की डोर’ — यह केवल पंक्तियाँ नहीं, पीढ़ियों से हमारे सामाजिक बंधनों का हिस्सा रही हैं।
किन्तु जहाँ वर्षा जीवनदायिनी है, वहीं वह कभी-कभी प्रलयंकारी भी हो सकती है। लगातार वर्षा से बाढ़ का खतरा होता है, घरों में पानी घुस जाता है, फसलें बह जाती हैं और जनजीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है। गाँवों में अक्सर लोग बेघर होते हैं, और शहरों में यातायात ठप। लेकिन जैसे कहा जाता है — ‘अति सर्वत्र वर्जयेत्’ — जब प्रकृति अपनी सीमा लांघती है, तो उसका दंड भी हमें सहना पड़ता है।
आज के युग में वर्षा का महत्व और भी अधिक बढ़ गया है। जल संरक्षण की आवश्यकता, पर्यावरणीय संकट और ग्लोबल वार्मिंग जैसे विषयों ने वर्षा को एक अमूल्य संपदा बना दिया है। हर बूँद अब सोने की तरह कीमती है। आज की युवा पीढ़ी को यह समझना होगा कि वर्षा केवल एक ऋतु नहीं, बल्कि पृथ्वी की धड़कन है। यदि हम इसका मूल्य नहीं समझेंगे, तो कल को इसकी अनुपस्थिति एक गंभीर संकट बन सकती है।
साहित्य, कला और संस्कृति में भी वर्षा की छवि अत्यंत मधुर और प्रेरणादायी रही है। कवियों ने इसे ‘प्रेयसी का मिलन’, ‘धरती का श्रृंगार’ और ‘प्रकृति का राग’ कहा है। फिल्मों में इसकी बूंदों में प्रेम की चिंगारी देखी गई है, तो लोकगीतों में इसके आने की प्रतीक्षा एक पर्व की तरह की गई है।
अंततः वर्षा ऋतु केवल जलवर्षा नहीं, यह जीवन की वर्षा है — सुख-दुख, रंग-बिरंगे अनुभव, आंतरिक संतुलन और मानवता के साथ प्रकृति के रिश्ते की एक सुंदर व्याख्या। यह हमें सिखाती है कि हर तपन के बाद शीतलता आती है, हर कठिनाई के बाद राहत मिलती है। यही जीवन का शाश्वत सत्य है — और यही है रिमझिम सावन का सन्देश।
अस्वीकरण (Disclaimer):
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