शक्ति उपासना का पर्व : नवरात्र उत्सव [Hindi Essay – (Navratri is a nine-day-long celebration to honours goddess Maa Durga for killing the demon Mahishasura)]

भारत विविधताओं का देश है, जहाँ हर मौसम, हर अवसर और हर भावना के अनुरूप पर्व और उत्सव मनाए जाते हैं। इन्हीं पर्वों में एक विशेष और पावन पर्व है — नवरात्र। यह पर्व न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि शक्ति साधना और आत्मबल जागरण का सजीव उदाहरण भी है। जन-जन की श्रद्धा और भक्ति का समुद्र इस अवसर पर उमड़ पड़ता है। ऐसी मान्यता है कि शक्ति ही इस सृष्टि की उत्पत्ति, पालन और संहार करती है। जिस प्रकार सूर्य की किरणें हर कोने को रोशन करती हैं, वैसे ही शक्ति सर्वत्र व्याप्त है। इसे महालक्ष्मी, महासरस्वती और महाकाली जैसे रूपों में पूजा जाता है। नवरात्र का पर्व इसी देवीशक्ति की उपासना के लिए समर्पित है।

भारत में वर्ष भर अनेक पर्व मनाए जाते हैं, परंतु नवरात्र का विशेष महत्त्व है। वर्ष में दो बार — एक बार वसंत ऋतु में चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से और दूसरी बार शरद ऋतु में आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवरात्र का पर्व मनाया जाता है। चैत्र नवरात्र में वसंत की मादक हवा के संग वातावरण में भक्ति की सुगंध घुल जाती है। घर-घर में घट स्थापना कर देवी दुर्गा की पूजा आरंभ होती है। भक्तजन नौ दिनों तक उपवास या फलाहार करते हैं। अष्टमी अथवा नवमी के दिन कन्या पूजन कर उन्हें आदरपूर्वक भोजन कराया जाता है और दुर्गा सप्तशती का पाठ एवं हवन किया जाता है। नवमी तिथि को रामनवमी के रूप में भी विशेष महत्त्व दिया जाता है, क्योंकि इसी दिन मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का जन्म हुआ था।

आश्विन मास में आने वाला नवरात्र पर्व, विशेष रूप से शरद ऋतु के आगमन का संकेतक है। प्रकृति अपनी संपूर्ण सुषमा और सौंदर्य के साथ खिल उठती है। यह समय शक्ति उपासना के लिए सर्वोत्तम माना गया है। इस अवसर पर गुजरात, पंजाब, महाराष्ट्र, ब्रज आदि क्षेत्रों में शक्तिपूजा के भव्य आयोजन किए जाते हैं। गुजरात में रात्रि में गरबा और डांडिया का आयोजन अत्यंत लोकप्रिय है। वहाँ स्त्री-पुरुष, बच्चे-बूढ़े, सभी रंग-बिरंगे वस्त्र पहनकर एक साथ तालियों की थाप पर गरबा नृत्य करते हैं। मिट्टी के कलशों में दीपक जलाकर शक्ति का आह्वान किया जाता है। गाँव-गाँव, नगर-नगर में शक्ति पूजा की लहर दौड़ जाती है और हर ओर भक्ति, उल्लास और उत्सव का रंग चढ़ जाता है। कहते हैं — “जहाँ शक्ति की भक्ति होती है, वहाँ भय नहीं रहता।”

हिमालय की गोद में बसे मंदिरों में तो इन दिनों श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ती है। कालिका माता, ज्वालामुखी देवी और चामुंडा माता के मंदिरों में भक्तों का मेला लगता है। महाराष्ट्र में पहले दिन घर-घर देवी की पूजा होती है और शेष दिनों में विविध सांस्कृतिक आयोजन किए जाते हैं। विशेष रूप से बंगाल में इस पर्व का अलग ही रंग-रूप देखने को मिलता है। वहाँ दुर्गा-पूजा के भव्य पंडाल सजाए जाते हैं। दस दिनों तक कोलकाता और अन्य नगरों में रात्रि जागरण, भजन-कीर्तन, नाटक, सांस्कृतिक कार्यक्रमों की बहार छा जाती है। पूरा बंगाल ‘दुर्गा मा की जय’ के जयकारों से गूंज उठता है।

बंगाल में दुर्गा पूजा केवल धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक परंपरा का महापर्व है। विशाल प्रतिमाओं का निर्माण महीनों पूर्व ही आरंभ हो जाता है। अष्टमी के दिन विशेष हवन और पूजा का आयोजन होता है। दशमी को विशाल जुलूस निकाला जाता है। देवी प्रतिमाओं को नाच-गान, ढोल-नगाड़े और श्रद्धा के साथ नदी, तालाब अथवा पवित्र जल में विसर्जित किया जाता है। इस अवसर पर कहा जाता है — “जो माँ की आराधना करता है, उसकी झोली कभी खाली नहीं रहती।” बंगाल के हर गली-मोहल्ले में जीवन्तता और उल्लास की लहर दौड़ जाती है।

आज के आधुनिक युग में भी नवरात्र पर्व का आकर्षण कम नहीं हुआ है। भले ही जीवन की आपाधापी और व्यस्त दिनचर्या में समय कम हो, फिर भी लोग देवी के नौ रूपों की आराधना के लिए समय निकालते हैं। डिजिटल मीडिया के माध्यम से ऑनलाइन दुर्गा पाठ और वर्चुअल गरबा की परंपरा भी शुरू हो गई है। पंडालों की सजावट में पर्यावरण संरक्षण का ध्यान रखा जाने लगा है। मिट्टी की मूर्तियों, प्राकृतिक रंगों और देसी सजावटी वस्तुओं का प्रचलन बढ़ा है। नवरात्र अब केवल धार्मिक पर्व न रहकर, सामाजिक एकता और सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक बन चुका है।

नवरात्र पर्व हमें यह शिक्षा देता है कि जीवन में परिश्रम, पुरुषार्थ और तपस्या का कोई विकल्प नहीं। हर मनुष्य के भीतर अनंत शक्तियाँ छुपी हैं। आवश्यकता है उन्हें पहचानने और साधना द्वारा जागृत करने की। जैसे अंधकार को दूर करने के लिए दीपक जलाना पड़ता है, वैसे ही अपने जीवन के संकटों को हराने के लिए आत्मशक्ति का दीप जलाना ज़रूरी है। यही शक्ति हमें बुराई पर अच्छाई की विजय, भय पर साहस की विजय और असत्य पर सत्य की विजय का मार्ग दिखाती है।

इस प्रकार नवरात्र पर्व केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि आत्मशक्ति, श्रद्धा और सामाजिक समरसता का अनुपम उदाहरण है। यह पर्व हमें हर परिस्थिति में आत्मबल से आगे बढ़ने, अपने भीतर की शक्ति को पहचानने और सत्यमेव जयते की भावना के साथ जीवन पथ पर अडिग रहने की प्रेरणा देता है। सच ही कहा गया है — “जो सच्चे मन से माँ भगवती का स्मरण करता है, उसके जीवन में कभी अभाव नहीं रहता।”

अस्वीकरण (Disclaimer):
यह निबंध केवल शैक्षणिक संदर्भ और प्रेरणा हेतु प्रस्तुत किया गया है। पाठकों/विद्यार्थियों को सलाह दी जाती है कि वे इसे शब्दशः परीक्षा या प्रतियोगिताओं में न लिखें। इसकी भाषा, संरचना और विषयवस्तु को समझकर अपने शब्दों में निबंध तैयार करें। परीक्षा अथवा गृहकार्य करते समय शिक्षक की सलाह और दिशा-निर्देशों का पालन अवश्य करें।

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