(दक्षिण भारत की भूमि से एक प्रेरणादायक लोककथा)
प्रस्तावना
बहुत समय पहले, दक्षिण भारत के एक छोटे से गाँव में रामैया नाम का एक ईमानदार और परिश्रमी किसान रहता था। वह दिनभर अपने खेतों में मेहनत करता और शाम को अपने घर के छोटे से मंदिर में भगवान की पूजा करता। उसके मन में बस एक ही इच्छा थी – भगवान वेंकटेश्वर के पवित्र मंदिर तिरुपति के दर्शन करना।
अधूरी इच्छा और सपना
रामैया ने कई वर्षों तक तिरुपति जाने का सपना देखा, लेकिन गरीबी ने उसे यह यात्रा करने का अवसर नहीं दिया। वह जब भी गाँव के तीर्थयात्रियों को वहाँ जाते देखता, उसका मन भी तीर्थयात्रा की ओर आकर्षित हो जाता, परंतु सीमित साधनों के कारण वह बस सपना ही देखता रहा।
यात्रा की तैयारी
समय बीता और कड़ी मेहनत के बाद रामैया की आर्थिक स्थिति थोड़ी बेहतर हुई। उसने तिरुपति यात्रा की योजना बनाई और अपनी पत्नी से इस बारे में बात की। उसकी पत्नी ने खुशी-खुशी उसके लिए यात्रा का भोजन तैयार किया और आशीर्वाद दिया। रामैया ने निश्चय किया कि वह पैदल यात्रा करेगा, क्योंकि उसके लिए यह कोई साधारण यात्रा नहीं थी – यह तो उसकी भक्ति की परीक्षा थी।
अचानक आया एक मोड़
रामैया कुछ अन्य तीर्थयात्रियों के साथ अपनी यात्रा पर निकला। मार्ग में उसने एक अशक्त वृद्ध व्यक्ति को देखा, जो भूखा-प्यासा सड़क किनारे बैठा था। उसके कपड़े फटे थे, चेहरा थका हुआ था और आँखों में असहायता झलक रही थी।
रामैया उसके पास गया और विनम्रता से पूछा,
“बाबा, क्या आप भी तिरुपति जा रहे हैं?”
वृद्ध ने थके हुए स्वर में उत्तर दिया,
“बेटा, मेरा परिवार बहुत कष्ट में है। मेरा बेटा बीमार है और कई दिनों से हमने भरपेट भोजन नहीं किया। मैं तीर्थयात्रा करने की स्थिति में नहीं हूँ।”
करुणा बनाम तीर्थयात्रा
रामैया का हृदय करुणा से भर गया। उसने सोचा – क्या भगवान की सच्ची भक्ति केवल मंदिर जाने से होती है या जरूरतमंद की सेवा से भी? उसने तुरंत अपना निर्णय बदल दिया।
उसने अपने साथियों से कहा, “मैं इस वृद्ध की सहायता करना चाहता हूँ।”
साथी तीर्थयात्रियों ने उसका मज़ाक उड़ाया और बोले,
“रामैया, तुमने इतने वर्षों तक तिरुपति जाने का सपना देखा था! अब इस वृद्ध के लिए तुम अपना सपना क्यों छोड़ रहे हो?”
कुछ दिनों तक वह उनके साथ रहा और बीमार बेटे की सेवा की। धीरे-धीरे वह स्वस्थ होने लगा, और रामैया का हृदय संतोष से भर गया।
त्याग का फल
किन्तु अब उसके पास तीर्थयात्रा के लिए पैसे नहीं बचे थे। उसने मन में सोचा, “कोई बात नहीं, अगर भगवान ने चाहा तो किसी और दिन तिरुपति जाऊँगा।”
घर लौटकर उसने पत्नी को सारा हाल बताया। पत्नी भी उसकी उदारता और भक्ति से प्रसन्न हुई।
ईश्वर की कृपा
उस रात रामैया को एक अद्भुत सपना आया। उसने देखा कि भगवान वेंकटेश्वर स्वयं उसके सामने खड़े हैं और प्रेम से कह रहे हैं –
“रामैया, तुम सच्चे भक्त हो। जो मनुष्य दूसरों की पीड़ा को नहीं समझता, वह मेरी भक्ति का अधिकारी नहीं हो सकता। मैं ही उस वृद्ध के रूप में तुम्हारी परीक्षा लेने आया था। तुमने अपनी तीर्थयात्रा का बलिदान कर मेरे सच्चे दर्शन कर लिए।”
रामैया ने आँखें खोलीं तो उसके हृदय में अपार आनंद था। उसने समझ लिया कि ईश्वर की भक्ति केवल मंदिर जाने में नहीं, बल्कि परोपकार और सेवा में भी है।
कहानी से सीख:
✅ सच्ची भक्ति का अर्थ केवल मंदिर जाना नहीं, बल्कि जरूरतमंदों की सहायता करना है।
✅ ईश्वर की कृपा वहाँ होती है, जहाँ सच्चे मन से सेवा और त्याग किया जाता है।
✅ धार्मिक यात्रा से बड़ा धर्म परोपकार है।
“जहाँ दया, वहाँ धर्म है!”
Disclaimer:
This story has been adapted and rewritten based on an Indian folktale. The names, characters, and events have been modified to create a unique and original retelling while preserving the essence of the moral lesson. This version has been independently crafted to ensure originality and does not intend to infringe upon any copyrights or intellectual property rights of the original publication. Any resemblance to real persons, places, or events is purely coincidental.