15 अगस्त का दिन भारतीय इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखा गया एक गौरवमयी पर्व है। 1947 में इसी दिन भारत ने विदेशी शासन की बेड़ियों को तोड़कर स्वतंत्रता का अमृत प्राप्त किया। वर्षों की दासता से मुक्त होकर भारतवासियों ने अपने आत्मसम्मान को पुनः स्थापित किया। इस दिन को याद करते हुए हमारे हृदय गर्व और कृतज्ञता से भर उठते हैं। स्वतंत्रता सेनानियों के त्याग और बलिदान को समझने के लिए हमें उनके जीवन से प्रेरणा लेनी चाहिए।
सन 1857 का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम भारतीयों की उस चिंगारी का प्रमाण था, जिसने दासता की नींव को हिलाना प्रारंभ किया। भले ही यह प्रयास तत्काल सफल न हुआ, परंतु इसने स्वतंत्रता की अग्नि को प्रज्वलित कर दिया। “सच्ची हार वह होती है, जब कोशिश करना छोड़ दिया जाए।” इसी सोच ने भारतीयों को आत्मनिरीक्षण और सुधार की राह पर डाला।
इस संग्राम के पश्चात समाज सुधारकों ने देश की नींव को सशक्त बनाने का कार्य किया। स्वामी दयानंद सरस्वती और राजा राममोहन राय ने सामाजिक कुरीतियों के विरुद्ध आवाज़ उठाई और शिक्षा, स्त्री-स्वतंत्रता तथा राष्ट्रप्रेम को जनमानस में स्थान दिलाया। उन्होंने आत्मबल, नैतिकता और राष्ट्रसेवा के विचारों से देश को ऊर्जावान बनाया।
स्वामी दयानंद सरस्वती का यह कथन – “स्वदेशी राज्य, सर्वोत्तम राज्य” – आज भी प्रेरणास्रोत है। उन्होंने आत्मनिर्भर भारत का स्वप्न देखा था, जो आज “मेक इन इंडिया” और “वोकल फॉर लोकल” अभियानों में जीवंत हो रहा है। उनके विचारों ने जन-जन को आत्मनिर्भर बनने की प्रेरणा दी।
1885 में कांग्रेस की स्थापना ने स्वतंत्रता आंदोलन को संगठित दिशा प्रदान की। लोकमान्य तिलक का “स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है” जैसे उद्घोषों ने युवाओं के मन में ऊर्जा भर दी। गोपाल कृष्ण गोखले, लाला लाजपत राय, सुरेन्द्रनाथ बनर्जी जैसे नेताओं ने जनचेतना को जगाया। ये आंदोलन केवल राजनीतिक नहीं था, बल्कि यह राष्ट्रीय पुनर्जागरण का प्रतीक था।
महात्मा गांधी के नेतृत्व में स्वतंत्रता संग्राम ने नई दिशा ली। उन्होंने सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलते हुए जनसामान्य को संगठित किया। लाखों लोग जेलों में बंद हुए, परंतु हिम्मत नहीं हारी। “यदि हम शांतिपूर्वक लड़ना सीख लें, तो दुनिया की कोई ताकत हमें परास्त नहीं कर सकती।” – बापू का यह विश्वास आज भी हमें प्रेरित करता है।
जब अहिंसात्मक आंदोलनों के साथ-साथ कुछ साहसी युवकों ने क्रांति की राह पकड़ी, तब देशप्रेम की पराकाष्ठा देखने को मिली। भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव, रामप्रसाद बिस्मिल, चन्द्रशेखर आज़ाद जैसे अमर बलिदानियों ने हँसते-हँसते फाँसी का फंदा चूमा। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस का “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा” आज भी हमारी रगों में जोश भर देता है।
द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान गांधीजी ने “भारत छोड़ो” आंदोलन की अगुवाई की। सरदार पटेल, नेहरू, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, जयप्रकाश नारायण जैसे नेताओं ने इस आंदोलन को नए ऊँचाई तक पहुँचाया। अंग्रेज़ों को अंततः भारत छोड़ना पड़ा और 15 अगस्त 1947 को भारत एक स्वतंत्र राष्ट्र बन गया।
आज स्वतंत्रता दिवस केवल उत्सव नहीं, बल्कि एक संकल्प का दिन है। नगरों में प्रभात फेरियाँ, विद्यालयों में झंडारोहण, देशभक्ति गीत, नाट्य प्रस्तुतियाँ और मिठाइयाँ – ये सब मिलकर इस पर्व को एक राष्ट्रीय उत्सव का रूप देते हैं। दिल्ली के लाल किले से प्रधानमंत्री का भाषण सम्पूर्ण देशवासियों को एक सूत्र में बाँधता है।
राज्यों की राजधानियों में भी ध्वजारोहण और सांस्कृतिक कार्यक्रमों की धूम रहती है। रात्रि में सरकारी भवनों पर जगमगाती रोशनी आज़ादी की उस चमक की याद दिलाती है, जो वर्षों के संघर्ष और बलिदान से अर्जित हुई थी।
आज के युग में स्वतंत्रता का अर्थ केवल राजनैतिक स्वतंत्रता नहीं, बल्कि सामाजिक, आर्थिक और डिजिटल स्वतंत्रता भी है। हमें न केवल अपने देश की सीमाओं की रक्षा करनी है, बल्कि विचारों, रोजगार और नवाचार में भी स्वतंत्रता को संरक्षित रखना है। “जो अपने अतीत को भूल जाता है, उसका भविष्य अंधकारमय होता है।” – इस विचार को ध्यान में रखते हुए, हमें स्वतंत्रता दिवस को आत्ममंथन और कृतज्ञता के दिन के रूप में मनाना चाहिए।
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