छोटी चिड़िया, बड़ा हौसला (Hindi Story – Little Bird, Big Courage)

(छोटे पंखों से भले उड़ान छोटी हो, पर अगर दिल में ज़िद हो तो आसमान भी झुक जाता है — ऐसी ही है यह प्रेरणादायक कहानी।)

बहुत समय पहले की बात है। नीले पहाड़ों के एक छोटे से गाँव में गुड्डू गौरैया नाम की एक चुलबुली चिड़िया रहती थी। गुड्डू जितनी छोटी थी, उतनी ही ज़िद्दी भी। जो बात मन में ठान लेती, उसे पूरा करके ही दम लेती।

एक दिन उसे गेहूं का एक खूबसूरत, मोटा दाना मिला। पर दाना था छिलके वाला, और बिना छिलका हटाए वह उसे खा नहीं सकती थी। गुड्डू ने सोचा कि चलो पिसाई वाली चक्की के पास चलकर छिलका उतरवा लूं। लेकिन जब वह दाना लेकर चक्की पर पहुँची, तभी एक झोंके से दाना अंदर जा गिरा।

गुड्डू ने चक्की से बिनती की, “ओ चक्की मैया, मेरा दाना दे दो, भूख से जान निकली जा रही है।”
चक्की ने धीरे से गुर्राकर कहा, “पहले बढ़ई को बुलाओ, वही मुझे चीरकर तुम्हारा दाना निकालेगा।”

गुड्डू उड़कर बढ़ई रामू काका के पास पहुँची और बोली, “काका! चक्की चीर दो, मेरा दाना अटक गया है।”
रामू काका छप्पर मरम्मत में लगे थे, बोले बिना देखे, “जाओ बच्चा, अभी फुर्सत नहीं है।”

यह सुन गुड्डू तमतमा उठी। सोचा, “अब तो इंसाफ़ के लिए राजा जी के पास जाऊँगी।”
राजा दरबार में अपने मंत्री संग गुफ्तगू में मशगूल था। गुड्डू बोली, “महाराज! रामू काका चक्की नहीं चीर रहे, मुझे मेरा दाना दिलवाइए।”

राजा ने अनसुना कर दिया। तब गुड्डू रानी के महल में गई। रानी अपने बालों में सोने की कंघी चला रही थी।
गुड्डू ने दुखड़ा सुनाया तो रानी मुस्कराकर बोली, “तू वो दाना भूल जा, मैं तुझे मोती दे देती हूँ।”

गुड्डू बोली,
“गौरैया क्या मोती खाए,
उसे तो गेहूं का दाना भाए!”

मोती उसके किस काम के? भूख तो पेट की थी, गहनों से क्या होता!

फिर वह पहुँची नागराज के पास और बोली, “रानी को डस लो, मेरी मदद नहीं की उसने।”
नागराज हँस पड़ा और बोला, “जा भाग यहाँ से, नहीं तो तुझे ही काट लूंगा!”

डरी-सहमी गुड्डू पहुँची लट्ठ बाबा के पास – वही लकड़ी का मोटा डंडा जो गाँव में सबकी रक्षा करता था। बोली, “इस नागराज की अकड़ ठिकाने लगा दो।”
लट्ठ ने बिना देखे कहा, “चल फूट, मुझसे ना हो पाएगा!”

गुड्डू की ज़िद जारी थी, तो लट्ठ बाबा झल्ला गए और उसे मारने दौड़े। गुड्डू किसी तरह जान बचाकर वहाँ से भागी।

अब पहुँची आग की देवी के पास, “इस लट्ठ को राख कर दो!”
आग ने कहा, “हर कोई मुझे जलाने को कहता है, मैं किसी की सुनती नहीं।”

गुड्डू अब भी हार मानने को तैयार नहीं थी। वह जा पहुँची समुद्र महाराज के पास। बोली, “आप इतना विशाल हैं, कृपा कर आग बुझा दो।”
लेकिन समुद्र ने उसकी आवाज़ को अपनी लहरों में बहा दिया।

थकी-हारी गुड्डू अब बैठी हाथी राजा की सूंड पर और बोली, “समुद्र को सुखा दो! मेरी मदद करो।”
हाथी तो अपने आराम में मग्न था, पत्ते खा रहा था।

अब आख़िर में गुड्डू अपनी अजीज दोस्त चिंकी चींटी के पास पहुँची। चींटी ने सारी बात सुनी और बोली, “चलो, अब समय है सबक सिखाने का!”

चींटी अपनी पूरी फौज लेकर हाथी की ओर बढ़ी। इतनी सारी चींटियों को आता देख हाथी डर गया और समुद्र को सुखाने दौड़ा।
समुद्र ने गुस्से में काँपते हुए कहा, “ठीक है! मैं आग बुझा देता हूँ, बस मुझे मत सुखाओ।”

आग डर के मारे लट्ठ को जलाने को तैयार हो गई।
लट्ठ नागराज के पीछे दौड़ा।
नागराज रानी को काटने पहुँचा।
रानी घबरा गई और राजा से गुहार लगाई, “महाराज! गुड्डू के साथ इंसाफ़ करो।”

राजा ने तुरंत बढ़ई को बुलाया और चक्की को चीरने का हुक्म दिया।
बढ़ई कुल्हाड़ी लेकर भागा और चक्की पर पहुँचा।

चक्की काँप उठी और बोली,
“मुझे मत चीरो, मैं अभी दाना बाहर निकाल देती हूँ!”
गुड्डू ने मुस्कराकर दाना लिया और उड़ चली – आसमान की ऊँचाई की ओर।


सीख:
कभी भी अपनी बात के लिए लड़ने से पीछे न हटो। जब बात सही हो, तो आवाज़ उठाना ज़रूरी है — चाहे रास्ता लंबा हो या अकेले चलना पड़े।

हम इसे अपने जीवन में कैसे अपनाएं?
जब हमें अन्याय महसूस हो या किसी का साथ चाहिए हो, तो हार नहीं माननी चाहिए। छोटी सी कोशिश भी बड़े बदलाव ला सकती है—बस ज़िद और धैर्य होना चाहिए। गुड्डू गौरैया की तरह डटे रहो, दुनिया खुद रास्ता दे देगी!

Disclaimer:
This story has been adapted and rewritten based on an Indian folktale. The names, characters, and events have been modified to create a unique and original retelling while preserving the essence of the moral lesson. This version has been independently crafted to ensure originality and does not intend to infringe upon any copyrights or intellectual property rights of the original publication. Any similarities to actual persons, places, or events are entirely unintentional and a result of creative coincidence.

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