“इस दिलचस्प लोककथा में हास्य, चालाकी और मानवीय भावनाओं का ऐसा संगम है जो हमें हँसाते हुए एक गहरी सीख भी दे जाता है — कि बिना सोचे-समझे किसी पर भरोसा करना कभी-कभी भारी पड़ सकता है। इस कहानी से आप न केवल आनंदित होंगे, बल्कि यह भी जानेंगे कि विवेक और धैर्य जीवन में कितने आवश्यक हैं।”
बहुत समय पहले की बात है, राजस्थान के एक छोटे से गाँव में रघुवीर नाम का एक किसान रहता था। ईमानदार, मेहनती और सीधा-सादा रघुवीर अपनी ज़मीन पर जी-जान से मेहनत करता था। लेकिन इस बार उसकी किस्मत रूठी हुई थी। उसे खेत में बोवनी के लिए कोई मज़दूर नहीं मिल रहा था।
जिससे भी बात करता, हर कोई ज़्यादा मेहनताना और ऐशो-आराम की माँग करता। रघुवीर के पास इतना सब देने की गुंजाइश नहीं थी। दिन गुजरते जा रहे थे, और बुआई का मौसम उसकी आँखों के सामने फिसलता जा रहा था।
तभी एक दिन गाँव के चबूतरे पर एक अजनबी से उसकी मुलाक़ात हुई। अजनबी ने बताया कि वह काम की तलाश में है। रघुवीर ने उत्साहित होकर पूछा, “कितनी मज़दूरी लोगे?”
अजनबी मुस्कराया, “बस दो वक़्त की रोटी और तन ढकने के लिए कपड़े दे देना मालिक, मैं हर काम करूँगा।”
रघुवीर की आँखों में चमक आ गई। लेकिन अजनबी ने अपनी बात पूरी की—“एक शर्त है मालिक… साल में एक बार मुझे अपनी मनमर्जी से एक शरारत करने की इजाज़त देनी होगी।”
रघुवीर थोड़ा चौंका, पर मन ही मन सोचा—”इतना सस्ता मज़दूर दोबारा नहीं मिलेगा, एक दिन की शरारत से क्या बिगड़ेगा?”
बस, यहीं से कहानी ने करवट ली।
वह अजनबी जो अब रघुवीर का नौकर बन चुका था, बहुत ही मेहनती निकला। खेतों में जैसे जान फूँक दी हो उसने। कुछ ही महीनों में रघुवीर की फसल लहलहाने लगी। अब रघुवीर गाँव के अमीर किसानों में गिना जाने लगा। वह नौकर को लेकर इतना प्रसन्न था कि उसकी शर्त तक भूल गया।
छह महीने बीतते ही, नौकर को अपनी एक दिन की शरारत की याद आ गई।
संयोग से उसी दिन रघुवीर की पत्नी की बहन और बहनोई उसके घर आए हुए थे। नौकर की आँखों में चमक आ गई। वह अलग-अलग जाकर सबके कान भरने लगा।
पहले वह मालकिन से बोला, “मालकिन, मालिक को भयंकर बीमारी है। आप यकीन नहीं करेंगी, लेकिन उनकी पीठ चाटकर देखिए, आपको नमक जैसा स्वाद आएगा… मौत नज़दीक है।”
फिर वह रघुवीर से जाकर बोला, “मालिक, लगता है मालकिन का दिमागी संतुलन ठीक नहीं है, कुछ गड़बड़ लग रही है। संभलकर रहिए।”
इसके बाद वह बहनोई से जाकर बोला, “आपके जीजा बहुत नाराज़ हैं। मुझे लगता है आज आपकी बहन की पिटाई तय है। जरा सावधान रहिएगा।”
इतना कहकर नौकर रफूचक्कर हो गया।
शाम को जब रघुवीर खेत से लौटा, उसने पत्नी से नहाने का पानी माँगा। जैसे ही वह कमीज़ उतारकर बैठा, पत्नी को नौकर की बात याद आ गई। धीरे से आई और पीठ चाट ली।
रघुवीर चौंक कर उछल पड़ा, “हे भगवान! ये तो सचमुच पगला गई है!”
वह गुस्से में डंडा उठाकर पत्नी पर झपटा। तभी उसका साला भी आ गया, जिसने डंडा छीन लिया। दोनों में तू-तू मैं-मैं शुरू हो गई। फिर साली भी आ धमकी और देखते ही देखते घर में रणभेरी बज उठी।
गाँव वाले शोर सुनकर इकट्ठा हो गए और बीच-बचाव किया। जब सच्चाई पूछी गई, तो सभी ने बताया कि नौकर ने क्या-क्या कहा था।
अब सबकी आँखें खुलीं।
नौकर की एक दिन की शरारत ने पूरे घर को तमाशा बना दिया था।
जब तक लोग उसे ढूंढने निकले, वह तो कब का नौ-दो-ग्यारह हो चुका था!
कहानी से सीख (Moral):
“बिना जांच-परख किसी की बात पर भरोसा करना कई बार भारी पड़ सकता है।”
इस सीख को रोज़मर्रा की ज़िंदगी में कैसे अपनाएँ?
आज के दौर में अफ़वाहों और अधूरी बातों का बाज़ार गर्म है। चाहे कोई कहे “वह तुम्हारे बारे में ऐसा बोल रहा है” या “ये काम ऐसे ही होता है”, बिना पूरी सच्चाई जाने प्रतिक्रिया देना बुद्धिमानी नहीं। हर बात की जाँच-पड़ताल करके ही विश्वास करें, वरना “नाच न जाने आँगन टेढ़ा” वाली स्थिति बन जाती है।